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३० । जैनतत्त्वविद्या
छहों पर्याप्तियों को एक मकान के प्रतीक से अच्छी प्रकार समझा जा सकता है-मकान-निर्माता मकान बनाने की योजना क्रियान्वित करते समय पत्थर, चूना, सीमेंट, काठ आदि सारी सामग्री एकत्रित करता है। इसी तरह सब प्रकार की पौद्गलिक सामग्री के संचयन का काम आहार पर्याप्ति का है।
___ मकान-निर्माता अपनी संग्रहीत सामग्री का वर्गीकरण करता है-अमुक पत्थर दीवार में काम आएगा, अमुक काष्ठ कपाट के काम आएगा। इसी प्रकार शरीर के अंगोपांगों के वर्गीकरण का काम शरीर पर्याप्ति का है। ____मकान बनाते समय उसमें हवा, प्रकाश आदि के प्रवेश, निर्गमन हेतु तथा आने-जाने के लिए द्वार, खिड़कियां आदि बनाई जाती हैं। इसी प्रकार इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास और भाषा पर्याप्ति होती है।
मकान बनाने के बाद व्यक्ति आवश्यकता और समय के अनुसार उसका उपयोग करता है। निर्वात कमरों का उपयोग सर्दी में करता है और हवादार कमरों को गर्मी में काम लेता है। यह काम मनःपर्याप्ति का है । कब क्या करना है? कैसे करना है ? आदि चिन्तन-मनन की समूची शक्ति मनःपर्याप्ति सापेक्ष है।
इन छहों पर्याप्तियों का प्रारम्भ एक साथ होता है और पूर्णता क्रमिक रूप से होती है। आहार पर्याप्ति की पूर्णता एक समय में हो जाती है। शेष पर्याप्तियों को पूर्ण होने में एक-एक अन्तर्मुहूर्त जितना समय लगता है। प्राणी की प्रत्येक गतिविधि में इन पर्याप्तियों का पूरा-पूरा सहयोग रहता है ।
१२. प्राण के दस प्रकार हैं१. श्रोत्रेन्द्रिय प्राण ६. मनोबल प्राण २. चक्षुरिन्द्रिय प्राण ७. वचनबल प्राण ३. घ्राणेन्द्रिय प्राण ८. कायबल प्राण ४. रसनेन्द्रिय प्राण ९. श्वासोच्छ्वास प्राण
५. स्पर्शनेन्द्रिय प्राण १०. आयुष्य प्राण प्राण का अर्थ है जीवनी शक्ति । इस शक्ति का सीधा संबंध जीव से है, फिर भी यह पौद्गलिक शक्ति सापेक्ष है। इसीलिए प्राण को परिभाषित करते हुए कहा गया है-'पर्याप्त्यपेक्षिणी जीवनशक्तिः प्राणा: ।' जीवन धारण करने में प्राणशक्ति का उपयोग होता है। प्राणी की प्राण-शक्ति का वियोजन होते ही मृत्य हो जाती है।
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