________________
२८ / जैनतत्त्वविद्या
द्रव्येन्द्रिय का दूसरा प्रकार है उपकरण द्रव्येन्द्रिय । इन्द्रिय की आभ्यन्तर निर्वृत्ति में अपने-अपने विषय को ग्रहण करने की जो पौद्गलिक शक्ति है, वह उपकरण इन्द्रिय है। ज्ञान में उपकारक होने के कारण इसे उपकरण इन्द्रिय कहा गया है। उदाहरण के लिए एक चाकू को प्रतीक बनाया जा सकता है । चाकू का निर्माण बाह्य निर्वृत्ति है। चाकू की धार का निर्माण आभ्यन्तर निर्वृत्ति है। चाकू की धार में छेदन-भेदन की जो शक्ति है, वह है उपकरण द्रव्येन्द्रिय । छेदन-भेदन की शक्ति न हो तो चाकू की कोई उपयोगिता नहीं रहती। इसी प्रकार उपकरण द्रव्येन्द्रिय के क्षतिग्रस्त हो जाने पर निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय का काम रुक जाता है। इसलिए पदार्थ के ज्ञान में आत्म-शक्ति के साथ पौद्गलिक शक्ति का भी अपना मूल्य है।
भावेन्द्रिय के दो प्रकार हैं-लब्धि इन्द्रिय और उपयोग इन्द्रिय ।
लब्धि इन्द्रिय का अर्थ है ज्ञान करने की क्षमता की उपलब्धि । यह आत्मिक शक्ति है। दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम से इस शक्ति की प्राप्ति होती है। आंख में देखने की शक्ति है, कान में सुनने की शक्ति है, नाक में सूंघने की शक्ति है, जीभ में चखने की शक्ति है और त्वचा में स्पर्श करने की शक्ति है । यह लब्धि भावेन्द्रिय
शक्ति प्राप्त होने पर भी वह तब तक कार्यकारी नहीं होती, जब तक उसका उपयोग न हो। इसलिए ज्ञान करने की शक्ति और उसे काम में लेने के साधन उपलब्ध करने पर भी उपयोग भावेन्द्रिय के अभाव में सारी उपलब्धि अकिंचित्कर रह जाती है।
चाकू है, उसका आकार अच्छा है, उसकी धार तीक्ष्ण है, हाथ में चाकू चलाने की क्षमता भी है, पर जब तक चाकू चलाने का पुरुषार्थ नहीं होगा, छेदन-भेदन की क्रिया निष्पन्न नहीं हो सकेगी। इसी प्रकार इन्द्रियों के आकार, उनमें निहित पौद्गलिक
और आत्मिक शक्ति की सत्ता होने पर भी जब तक जीव उसका प्रयोग नहीं करता है, इन्द्रियां अपने विषय का ग्रहण नहीं कर सकतीं।
उपर्युक्त इन्द्रियों की प्राप्ति का क्रम इस प्रकार है-सबसे पहले लब्धि-इन्द्रिय। उसके बाद निर्वृत्ति इन्द्रिय, फिर उपकरण इन्द्रिय और इन सबके बाद उपयोग इन्द्रिय । लब्धि के बिना निर्वृत्ति और उपकरण इन्द्रियां नहीं हो सकतीं और निर्वृत्ति एवं उपकरण के बिना उपयोग इन्द्रिय नहीं हो सकती । लब्धि से उपयोग तक की श्रृंखला जुड़ी रहने से ही इन्द्रियां अपने-अपने विषय का ग्रहण कर सकती हैं। इनमें से किसी भी तंत्र के विकृत होने पर ज्ञान चेतना और विषय के बीच में व्यवधान उपस्थित
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org