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________________ १०. इन्द्रिय के पांच प्रकार हैं ४. रसनेन्द्रिय ५. स्पर्शनेन्द्रिय १. श्रोत्रेन्द्रिय २. चक्षुरिन्द्रिय ३. घ्राणेन्द्रिय प्रत्येक इन्द्रिय के दो-दो प्रकार हैं१. द्रव्येन्द्रिय द्रव्येन्द्रिय के दो प्रकार हैं१. निर्वृत्ति भावेन्द्रिय के दो प्रकार हैं१. लब्धि २. उपयोग एक निश्चित विषय का ज्ञान करने वाली आत्म चेतना इन्द्रिय कहलाती है । ज्ञान आत्मा का धर्म है | चेतना का अभिन्न अंग है । इसलिए आत्मा और ज्ञान के बीच में कोई व्यवधान नहीं रहता । किन्तु जो आत्मा अनावृत नहीं होती, कर्म- पुद्गलों से आबद्ध होती है, उसका ज्ञान भी आवृत रहता है। उस समय ज्ञान करने का माध्यम बनती हैं इन्द्रियां । दसवें बोल में इन्द्रियों की ही चर्चा है । इन्द्रिय के पांच भेद हैं । सब संसारी प्राणियों को ये सब इन्द्रियां प्राप्त नहीं होती । कम-से-कम एक और अधिक-से-अधिक पांच इन्द्रियों का स्वामित्व रखने वाले जीव के पांच प्रकारों की चर्चा छठे बोल में की जा चुकी है । इन्द्रियों की प्राप्ति में शरीर नामकर्म के उदय तथा दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम का युगपत् योग रहता है 1 इन्द्रिय के दो प्रकार हैं- द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय | Jain Education International २. भावेन्द्रिय २. उपकरण वर्ग १, बोल १० / २७ कान, नाक, जीभ आदि के रूप में जो दृश्य पौद्गलिक इन्द्रियां हैं, उनको द्रव्येन्द्रिय कहा जाता है । द्रव्येन्द्रिय के दो रूप हैं - निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय और उपकरण द्रव्येन्द्रिय । निर्वृत्ति का अर्थ है आकार । वह दो प्रकार की होती है - बाह्य और आभ्यन्तर । बाह्य आकार प्रत्येक जीव के प्रत्येक इन्द्रिय का स्वतंत्र होता है । उनमें एकरूपता नहीं होती । किन्तु प्रत्येक इन्द्रिय का आभ्यन्तर आकार निर्धारित है । वह सब जीवों के एक समान होता है । केवल स्पर्शनेन्द्रिय का आकार भिन्न-भिन्न होता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003129
Book TitleJain Tattvavidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2008
Total Pages208
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, M000, & M015
File Size8 MB
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