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२०/ जैनतत्त्वविद्या
६. जीव के पांच प्रकार हैं१. एकेन्द्रिय
४. चतुरिन्द्रिय २. द्वीन्द्रिय
५. पंचेन्द्रिय ३. त्रीन्द्रिय छठे बोल में जीव के पांच प्रकार बताए गए हैं-एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय। ___जीव का प्रमुख लक्षण है चेतना। चेतना ऐसा तत्त्व है जो अरूप है, अशब्द है, अगंध है, अरस है और अस्पर्श है। उसके स्वरूप-बोध का प्रकृष्टतम साधन है केवलज्ञान । केवलज्ञान मूर्त और अमूर्त सब पदार्थों को जानने और देखने में सक्षम है। मूर्त पदार्थों का ज्ञान दूसरे माध्यमों से भी हो सकता है पर अमूर्त पदार्थ का सर्वाङ्गीण ज्ञान केवलज्ञानी ही कर सकता है।
__ चेतना अमूर्त है । उसे जानने का साधन केवलज्ञान हमारे पास नहीं है । ऐसी स्थिति में उसका खण्डशः ज्ञान करने में हमारी इन्द्रियां, मन, संवेदन, अनुमान, आगम
आदि ज्ञानधाराएं निमित्त बनती हैं। इन निमित्तों में इन्द्रियां एक प्रबल निमित्त हैं। इन्द्रियों के आधार पर चेतना की जो अभिव्यक्ति होती है, उसी के आधार पर यहां जीव के पांच प्रकार किए गए हैं। ___संसार में जितनी जीव-जातियां हैं, उनमें सबसे कम विकसित चेतना एकेन्द्रिय जीवों की है । पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति—ये सब एक स्पर्शन इन्द्रिय वाले जीव हैं। ये न चख सकते हैं, न सूंघ सकते हैं, न देख सकते हैं और न सुन सकते हैं। इनका सारा काम एक स्पर्श के आधार पर चलता है। इस विभाग में संसारी जीवों का इतना बड़ा पिण्ड है, जो गणित की गणना का विषय नहीं हो सकता।
द्वीन्द्रिय जीवों में स्पर्शन और रसन-इन दो इन्द्रियों का विकास होता है। इन जीवों की चेतना इन्हीं दो बिन्दओं पर केन्द्रित है। इसलिए इनका सारा काम इन दो माध्यमों से हो जाता है । कृमि, शंख, अलसिया आदि अनेक प्रकार के जीव इस विभाग में हैं, जो अपनी स्पर्शन और रसन क्षमता के आधार पर जीवन-यापन करते
त्रीन्द्रिय जीवों में घ्राण चेतना और विकसित हो जाती है। इस विभाग के
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