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________________ १९६ / जैनतत्त्वविद्या ७. मान ८. माया ९. लोभ १०. राग ६. आश्रव के पांच प्रकार हैं १. मिथ्यात्व २. अव्रत ७. संवर के पांच प्रकार हैं बाह्य ६ - १. सम्यक्त्व २. व्रत ८. निर्जरा के बारह प्रकार हैं १. अनशन २. ऊनोदरी ३. भिक्षाचरी आभ्यन्तर ६ ---- ७. ८. विनय ९. वैयावृत्त्य ९. बन्ध के चार प्रकार हैं प्रायश्चित्त Jain Education International ११. द्वेष १२. कलह १. प्रकृति २. स्थिति १० मोक्ष के चार हेतु हैं १. सम्यक् दर्शन २. सम्यक् ज्ञान ११. दृष्टि के तीन प्रकार हैं १३. अभ्याख्यान १४. पैशुन्य ३. प्रमाद ४. कषाय ३. अप्रमाद ४. अकषाय १. सम्यग् दृष्टि १२. सम्यक्त्व के पांच प्रकार हैं १. औपशमिक २. क्षायिक १५. परपरिवाद १६. रति- अरति १७. माया - मृषा १८. मिथ्यादर्शनशल्य २. मिथ्या दृष्टि ५. ५. ३. क्षायोपशमिक ४. सास्वादन For Private & Personal Use Only ४. रसपरित्याग ५. कायक्लेश ६. प्रतिसंलीनता ३. अनुभाग ४. प्रदेश १०. स्वाध्याय ११. ध्यान १२. व्युत्सर्ग योग अयोग ३. सम्यक् चारित्र ४. सम्यक् तप ५. ३. सम्यग् - मिथ्या दृष्टि वेदक www.jainelibrary.org
SR No.003129
Book TitleJain Tattvavidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2008
Total Pages208
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, M000, & M015
File Size8 MB
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