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तृतीय वर्ग / १९७ १३. सम्यक्त्व के दो हेतु हैं
१. निसर्ग (सहज)
२. अधिगम (उपदेश आदि से प्राप्त) १४. सम्यक्त्व के पांच लक्षण हैं१. राम
४. अनुकम्पा २. संवेग
५. आस्तिक्य ३. निर्वेद १५. सम्यक्त्व के पांच दूषण हैं१. शंका
४. परपाषण्डप्रशंसा २. कांक्षा
५. परपाषण्डपरिचय ३. विचिकित्सा १६. सम्यक्त्व के पांच भूषण हैं१. स्थैर्य
४. कौशल २. प्रभावना
५. तीर्थसेवा ३. भक्ति १७. ज्ञान के आठ आचार हैं१. काल
५. अनिह्नवन २. विनय
६. सूत्र ३. बहुमान
७. अर्थ ४. उपधान
८. सूत्रार्थ १८. दर्शन के आठ आचार हैं१. निःशंकिता
५. उपबृंहण २. निष्कांक्षिता
६. स्थिरीकरण ३. निर्विचिकित्सा
७. वात्सल्य ४. अमूढ़दृष्टि
८. प्रभावना १९. चारित्र के आठ प्रकार हैं
पांच समिति१. ईर्या समिति
४. आदाननिक्षेप समिति २. भाषा समिति
५. उत्सर्ग समिति ३. एषणा समिति
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