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वर्ग ४, बोल २६ / १७९
२६. पर्युपासना के दस लाभ हैं१. श्रवण
६. अनाव २. ज्ञान
७. तप ३. विज्ञान
८. व्यवदान ४. प्रत्याख्यान
९. अक्रिया ५. संयम
१०. सिद्धि जीवन एक यात्रा है । इस यात्रा के अनेक पड़ाव हैं। कुछ पड़ाव अन्तिम होते हैं और कुछ अग्रिम पड़ावों से जुड़े होते हैं। इन पड़ावों का बोध करने के लिए शिष्य गुरु की उपासना करता है। गुरु की पर्युपासना से उसे यात्रा के आदि बिन्दु से लेकर अन्तिम बिन्दु तक का अवबोध हो जाता है। उन बिन्दुओं को दस प्रतीकों से समझा जा सकता है
श्रवण गुरु की उपासना करने वाला अपूर्व तत्त्व को सुनता है। ज्ञान तत्त्व को सुनने से व्यक्ति की ज्ञान-चेतना का जागरण होता
प्रत्याख्यान
विज्ञान विशिष्ट ज्ञान का नाम है विज्ञान । इससे ज्ञात तत्त्व की मीमांसा
और प्रत्यक्ष अनुभूति होने लगती है। इस अनुभव से उसको हेय और उपादेय का सम्यक् बोध होता है । इसके द्वारा व्यक्ति अंधकार से प्रकाश की ओर गतिशील बनता है तथा उसका विवेक जागत होता है।। प्रत्याख्यान का अर्थ है छोड़ना। यह विवेचनात्मक ज्ञान की परिणति है। हेय और उपादेय का पूर्ण बोध होने के बाद
व्यक्ति के जीवन से हेय अपने आप छूटने लगता है। संयम संयम का अर्थ है प्रवृत्ति का निरोध या विषय का प्रत्याख्यान ।
इसकी निष्पत्ति है आत्मरमण । आत्मरमण होने से चेतना
ज्ञाताभाव और द्रष्टाभाव से संयुक्त हो जाती है। अनाश्रव-संवर संयम साधना है। उसकी सिद्धि है संवर । जितना-जितना
संयम बढ़ता है, संवर का उतना ही विस्तार होता जाता है। संवर के सधने से तप की चेतना का जागरण होता है । इससे ऊर्जा का विकास होता है और भीतर जमे हा संस्कारों में
तप
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