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वर्ग४, बोल ४ । १४३ जीवास्तिकाय-चेतनामय सावयव द्रव्य ।
काल-पंचास्तिकाय के अतिरिक्त एक द्रव्य और है काल । इसका गुण हैवर्तना। यह जीव और पुद्गल सब पर वर्तता रहता है। काल का सबसे छोटा रूप है समय । समय कभी पिण्डीभूत नहीं होता । जो समय बीत गया, वह संचित नहीं होता। इसलिए इसे निरवयव द्रव्य माना गया है।
पांच अस्तिकाय और काल के रूप में द्रव्य का जो वर्गीकरण है, उसका आधार ठोस और वैज्ञानिक प्रतीत होता है। क्योंकि गति, स्थिति आदि पदार्थ के स्वाभाविक गुण हैं। फिर भी इनमें किसी परोक्ष तत्त्व का सहकार अवश्य होना चाहिए अन्यथा कोई नियामकता नहीं हो सकती। __हमारी दुनिया निमित्तों की दुनिया है । उपादान अर्थात् मूल कारण सब कुछ है। वह अपना काम निमित्त-सापेक्ष होकर ही करता है। यदि निमित्तों को अस्वीकार कर दिया जाए जो गतिशील पदार्थ की ज्यादा गति होगी और स्थिर पदार्थ में गति की संभावना समाप्त हो जाएगी। एक ही पदार्थ में गति और स्थिति दोनों दिखाई देते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि परोक्ष में कुछ नियामक तत्त्व ऐसे हैं, जो गति
और स्थिति पर नियन्त्रण रखते हैं। वे तत्त्व हैं-धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय । इसी प्रकार आकाश, पुद्गल आदि के भी अपने स्वतन्त्र कार्य हैं, जो उन्हें दूसरे द्रव्यों से पृथक् करते हैं।
४. छह द्रव्यों के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुणधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय
द्रव्य से एक द्रव्यास्वनाम), क्षेत्र से लोकव्यापी,काल से अनादि-अनन्त, भाव से अमूर्त, गुण से गमन एवं स्थान गुण । आकाशास्तिकाय
द्रव्य से एक द्रव्यास्वनाम), क्षेत्र से लोकालोकव्यापी, काल से अनादि-अनन्त, भाव से अमूर्त, गुण से अवगाहन गुण । काल
द्रव्य से अनन्त द्रव्य, क्षेत्र से समयक्षेत्रवर्ती, काल से अनादि-अनन्त, भाव से अमूर्त, गुण से वर्तन गुण।
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