SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ग, बोल १९ / १२३ उपबृंहण सम्यक् दर्शन की पुष्टि का नाम उपबृंहण है । इसके द्वारा सद्गुणों को प्रोत्साहन दिया जाता है। इसके स्थान पर कहीं-कहीं उपगूहन शब्द का प्रयोग भी होता है। इसका अर्थ है अपने गुणों का अथवा प्रमादवश हुए किसी के दोषों का गोपन करना। स्थिरीकरण ___ धर्ममार्ग या न्यायमार्ग से विचलित व्यक्तियों को हेतु, दृष्टान्त आदि से समझाकर पुनः धर्म और न्याय के मार्ग में स्थिर करना । इसे स्थिरीकरण या स्थितिकरण भी कहा जाता है। वात्सल्य साधर्मिकों-एक धर्म में आस्था रखने वालों के प्रति वत्सलभाव या सहानुभूति का भाव रखना। साधर्मिक साधुओं को आहार, वस्त्र आदि देना तथा गुरु, तपस्वी, शैक्ष, ग्लान आदि की विशेष सेवा करना। प्रभावना धर्म-तीर्थ की उन्नति के लिए प्रयत्न करना, सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र से अपनी आत्मा को प्रभावित करना, जिन-शासन की महिमा बढ़ाना आदि प्रभावना के अंग हैं। सम्यक्त्व के पांच अतिचारों का वर्जन करने से और आठ आचारों का पालन करने से सम्यक् दर्शन पुष्ट होता है। १९. चारित्र के आठ आचार हैंपांच समिति १. ईर्या समिति ४. आदाननिक्षेप समिति २. भाषा समिति ५. उत्सर्ग समिति ३. एषणा समिति तीन गुप्ति ६. मनोगुप्ति ८. कायगुप्ति ७. वाक्गुप्ति चारित्र का अर्थ है संयम । सब प्रकार की सपाप प्रवृत्तियों का परित्याग करने वाला व्यक्ति संयमी या चारित्रवान् होता है। चारित्र का पालन करने वाला मुनि कहलाता है । चारित्र धर्म की मूलभूत आचार-संहिता है 'महाव्रत' । मुनि शरीरधारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003129
Book TitleJain Tattvavidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2008
Total Pages208
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, M000, & M015
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy