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१२० / जैनतत्त्वविद्या
१६. सम्यक्त्व के पांच भूषण हैं१. स्थैर्य
४. कौशल २. प्रभावना
५. तीर्थसेवा ३. भक्ति शरीर को अलंकृत करने के लिए आभूषण पहने जाते हैं। उसी प्रकार सम्यक्त्व को सजाने-संवारने के लिए सम्यक्त्व के पांच भूषण बतलाए गए हैं। आभूषणों से शरीर का सौन्दर्य बढ़ता है । सम्यक्त्व के भूषणों से आत्मा का सौन्दर्य बढ़ता है। आत्मा यदि सुन्दर नहीं है तो शरीर को कितने ही आभूषण पहना दिए जाएं, आन्तरिक सौन्दर्य की वृद्धि नहीं होगी। आत्मा का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए सम्यक्त्व के भूषणों का उपयोग करना जरूरी है। सम्यक्त्व के लक्षण और दूषणों की साधारण जानकारी के बाद उनके भूषणों को समझना भी आवश्यक हो जाता है । इसी दृष्टि से इस बोल में भूषणों की संक्षिप्त चर्चा की गई है। स्थैर्य- अपने मन को लक्ष्य और उसकी प्राप्ति के साधनों में स्थिर
करना। धर्म की महिमा का विस्तार हो, वैसा प्रयत्ल करना। जिन
प्रवचन की प्रभावना करना। भक्ति- देव, गुरु और धर्म की भक्ति में निरन्तर लीन रहना। कौशल- जैन तत्त्व-विद्या की विशद जानकारी प्राप्त कर उसमें निष्णात
होना। जिन प्रवचन में मूढ़ नहीं बनना। तीर्थसेवा- धर्मसंघ की वृद्धि करना और विचलित होती हुई धार्मिक
आस्था का स्थिरीकरण करना।
प्रभावना
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