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क्या आपको उसकी बुद्धि पर तरस नहीं आएगी। क्या आप उस लोथ वाले मोटे-ताजे शरीर को पसन्द करेंगे ? अगर 'नहीं' तो मैं पूछना चाहता हूं, आज आपका यह जो कहना है कि धन सब कुछ है, अर्थ सब समस्याओं का हल है, कहां तक ठीक है ?
दरिद्रनारायण कहता है, जाति जाओ रसातल में, गुण जाओ उससे भी और नीचे, शील के टुकड़े-टुकड़े हो जाओ, शौर्य पर बिजली पड़े, नहीं चाहिए यश व गुण, मुझे तो धन चाहिए। उसके बिना समग्र गुण बेकार
न जाति चाहिए, न कुल चाहिए और न गुण चाहिए। क्या करे वह गरीब इन सब का, जिसके पास खाने का टुकड़ा नहीं । वैभव के बिना पूछता कौन है किसीको । भूखा क्या खाये... 'बुभुक्षित करणं न भुज्यते, पिपासितैः काव्यरसो न पीयते ।'
'भूखे भजन न होइ गोपाला ।' आखिर भूखे को तो चाहिए अन्न । वह क्या करे आपके इन गुणों का। बड़ी कठिन समस्या है। सत्य सूझे किसे, जब पेट में बिल्लियां लड़ें, चूहे उछल-कूद मचायें। अणुव्रत आंदोलन का उद्देश्य
___ मैं मानता हूं, यद्यपि गरीबी के कारण अनेक समस्याएं पैदा होती हैं, व्यक्ति का चिन्तन भी उससे एक सीमा तक प्रभावित होना असंभावित नहीं है, तथापि इसे मूल समस्या नहीं माना जा सकता । मूल संकट आस्था का है, श्रद्धा का है । आज व्यक्ति की सत्य से आस्था डोल रही है। इसलिए सबसे बड़ी अपेक्षा यह है कि यथार्थ श्रद्धा को पुनः प्रतिस्थापित करने के लिए एक वेगवान् प्रयत्न किया जाए। इसी लक्ष्य को लेकर अणुव्रत आन्दोलन का प्रवर्तन हुआ है। ध्यान रहे, अणुव्रत आन्दोलन किसी जाति, समाज और धर्मविशेष के बन्धनों से सर्वथा मुक्त है । वह तो मानवमात्र से सम्बन्धित है। मानवमात्र का आन्दोलन है, जीवन का आन्दोलन है। 'अणव्रत प्रार्थना' का अग्रोक्त पद उसके ध्येय को बहुत अच्छे ढंग से स्पष्ट करता है
गहिणी हो, गृहपति हो चाहे, विद्यार्थी, अध्यापक हो। वैद्य, वकील, शील हो सब में, नैतिक निष्ठा व्यापक हो। धर्मशास्त्र के धार्मिकपन को आचरणों में लाएं हम ॥ आत्म-साधना के सत्पथ में अणुव्रती बन पाएं हम ॥ बड़े भाग्य हे भगिनि ! बन्धुओ! जीवन सफल बनाएं हम ॥
सभी वर्ग के लोगों में सम्यक् आचार के प्रति निष्ठा व्याप्त हो, इसी उद्देश्य से अणुव्रत आन्दोलन देश में काम करता है ।
मानवता मुसकाए
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