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________________ ३७. मिथ्या दृष्टिकोण : सबसे बड़ा पाप नैतिक आन्दोलनो की आज जितनी उपयोगिता है, उतनी शायद सतयुग में नहीं थी। हर वस्तु की उपयोगिता समयसापेक्ष होती है। 'नीकी पे फीकी लगे, बिन अवसर की बात'--असमय में अच्छी-से-अच्छी वस्तु की कोई कीमत नहीं होती। भोजन कितना प्रिय होता है, इसका अनुभव भूखे से पूछे । प्यास से ही पानी का मूल्य है। जब देश में कंट्रोल नहीं था, ब्लैक छोड़ने की बात अनावश्यक थी। लेकिन आज आवश्यक है। देश में बहुत बड़ा दुर्भिक्ष है । अनाज का नहीं। पानी का नहीं। ये तो बहुत छोटी बातें हैं । दुर्भिक्ष है मानवता का, श्रद्धा का। __ पहले मनुष्य पाप नहीं करता था, ऐसी बात नहीं है । सदा पाप था, अब भी है। मनुष्य झूठ पहले भी बोलता था । चोर सतयुग में भी होते थे । सदा से अच्छाइयां और बुराइयां दोनों थीं और भविष्य में भी रहेंगी। हां, कभी-कभी बुराइयों का आधिक्य होता है। दुर्भाग्य से आज यह स्थिति बनी है । निश्चय ही यह एक चिन्तनीय स्थिति है। पर इससे से भी अधिक गंभीर बात यह है कि आज का मनुष्य यह कहने लग गया है 'सत्य से काम नहीं चल सकता।' ___ शराब पीना निश्चित ही एक बुराई है । पर शराब जैसी चीज की विशेषता गाई जाये, सरे-बाजार यह कहा जाए कि शराब पीना बड़ा अच्छा है, इससे दिमाग तनावमुक्त और स्थिर रहता है, यह तो भयंकर बुराई है, बल्कि सबसे बड़ी बुराई है। सबसे बड़ा पाप जैनागमों में अठारह प्रकार के पाप बताए गए हैं--- १. प्राणातिपात, (हिंसा) २. मृषावाद (भूठ) ३. अदत्तादान (चोरी) ४. मैथुन (अब्रह्मचर्य) ५. परिग्रह, ६. क्रोध ७. मान ८. माया ९. लोभ १०. राग ११. द्वेष १२. कलह १३. अभ्याख्यान (कलंक) १४. पैशुन्य १५. परपरिवाद १६. रति-अरति (असंयम में रति, संयम में अरति) १७. मायामृषा (कपटसहित झूठ) १८. मिथ्यादर्शनशल्य । इनमें पहले सत्तरह प्रकार के पाप एक तरफ हैं और अठारहवां पाप ७८ मानवता मुसकाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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