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भी कुछ ऐसा कर लेता है, कह देता है, जो दूसरों के लिये प्रेरणा का काम कर जाता है।
दासी से प्रतिबोध
प्राचीन समय की बात है। एक दासी राजा की शय्या बिछाने के लिये नियुक्त थी। वह प्रतिदिन शय्या तैयार करती और राजा के शय्या पर आ जाने के बाद वापस चली जाती। एक दिन उसने शय्या तैयार की। उस समय उसकी आंखों में नींद घुल रही थी। उसके मन में विचार आया-कितनी कोमल है यह शय्या! इस पर सो जाऊं तो कैसा रहे ? फिर विकल्प उठा, कहीं बीच में ही राजाजी आ गए तो ? पर मन ने तत्काल सामाधान दिया--पर वे तो बड़ी देर से आते हैं। मैं अभी आधे घंटे में सोकर उठ जाऊंगी। और इस समाधान के साथ ही वह शय्या पर सो गई। थकी हुई तो थी ही, नींद ने उस पर पर्दा डाल दिया और ऐसा पर्दा डाल दिया कि वह अपनी सुध-बुध ही भूल गई।
कुछ देर के बाद राजा सोने के लिये आया। उसने देखा- शय्या पर तो दासी सोई है। उसे बड़ा गुस्सा आया । झट अंगरक्षकों को आवाज देकर बुलाया और आदेश दिया-'इस दासी के एक-एक मिनिट बाद सात-सात कोड़े लगाओ।' अंगरक्षकों ने आदेश का पालन शुरू किया। पर राजा ने देखा कि कुछ विचित्र घटित हो रहा है। कुछ कोड़े खाकर दासी उठ खड़ी हुई है और हंसने लगी है। राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। कोड़े लगवाना बंद कर उसने दासी से पूछा-'कोड़े खाकर भी तू हंस क्यों रही है ?' उसने कहा--'महाराज ! आपने बड़ा अच्छा किया जो मुझे इतना जल्दी उठा दिया। थोड़ी देर सोने के दण्डस्वरूप जब मेरे इतने कोड़े पड़ रहे हैं तो सारी रात सोने वालों के तो न जाने कितने कोड़े पड़ेंगे ! अत: इस सुख और विचित्रता के कारण मुझे हंसी आ रही है ।' सुनते ही राजा की आंखें खुल गईं। वह संसार से विरक्त बन गया। बस, उसी क्षण उसने प्रासाद छोड़ तपोवन का मार्ग पकड़ लिया।
___ आपने देखा कि वह दासी कोई पढी-लिखी नहीं थी, तथापि उसकी एक बात ने ही राजा का सारा जीवन पलट दिया। अतः पढ़-लिखकर विद्यार्थी अपना जीवन ऐसा बनाएं, जिससे कि दूसरे उससे लोग प्रेरणा पायें ।
विद्यार्थी कहते हैं-जब वातावरण विकृत रहता है, तब हम कैसे सुधर सकते हैं। पर इस संदर्भ में मैं उनसे कहना चाहता हूं कि वातावरण बदलने पर बदलना कोई गीरम/विशेषता की बात तो नहीं होगी, बल्कि कहना
मानवता मुसकाए
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