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बंधी हई थीं, वे उदय में आईं और आत्मा को विकृत बनाकर पापों से भारी करके चली गईं। यह निर्जरा न सकाम निर्जरा है और न अकाम निर्जरा ही।
जैसे, दो व्यक्तियों ने अपनी जमीन, जायदाद, आभूषण, गिरवी रखकर कर्ज लिया। एक अपने श्रम से कर्ज चुका कर अपनी उपरोक्त वस्तुएं छुड़ा लेता है। पर दूसरा समयावधि पूरी होने तक उन्हें नहीं छुड़ा पाता । फलतः वे वस्तुएं चली जाती हैं और कर्ज चुक जाता है । परन्तु वस्तुतः यह कर्जा चुकाना नहीं, स्वयं का बर्बाद होना है। इसी तरह यह निर्जरण भी निर्जरा-तत्व नहीं, पर आत्म-घर की बर्वादी है ।।
इसी तरह पुण्य-पाप भी हैं। आत्मा के साथ बंधे हुए कर्म बन्ध हैं, तो भोगे जाने वाले कर्भ पुण्य-पाप हैं। द्रव्य-बंधे हुए पुण्य-पाप को भाव बंध कहा जाता है। इसी प्रकार कर्म-बन्ध की उदीयमान अवस्था को भाव पुण्यपाप कहते हैं।
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मानवता मुसकाए
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