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________________ ३२. समस्या का हल आज की स्थिति पर जब हम सूक्ष्मता से दृष्टिपात करते हैं तो एक बात बहुत स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आती है कि न केवल भारतवर्ष ही, अपितु समूचा संसार नाना प्रकार की समस्याओं से आक्रान्त है। कहीं गरीबी की समस्या बनी हुई है, तो कहीं धन की बहुलता की समस्या । लोगों को दिन-रात इस बात की चिंता सताती है कि इसको सुरक्षित कैसे रखा जाए। कहीं जातीय उन्माद की समस्या है, तो कहीं वर्णवाद सिरदर्द बना हुआ है । कहीं रंगभेद की समस्या सुलग रही है, तो कहीं साम्प्रदायिक संघर्षों की धूम है । कहीं हिंसा का नग्न नृत्य हो रहा है, तो कहीं बढती हुई जनसंख्या की समस्या है। मैं मानता हूं, जब समूचा संसार संकट के दौर से होकर गुजर रहा हो, तब कोई एक देशविशेष या क्षेत्रविशेष समस्याओं से सर्वथा अनछुआ नहीं रह सकता। वह भी आज के युग में, जबकि दुनिया के एक कोने का स्वर देखते-देखते ही दूसरे कोने में झंकृत हो उठता है । यह वस्तुस्थिति का चित्रण है । इससे इनकार नहीं हुआ जा सकता। पर इसके बावजूद निष्क्रिय होकर बैठ जाना कदापि उचित नहीं है। निराशा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। अत: समस्याओं का हल सोचते रहना और उसके अनुरूप पुरुषार्थ करते रहना, यही समझदारी का तकाजा ___ अहिंसा, अपरिग्रह और संयम के संस्कार भारतवासियों को विरासत में प्राप्त हुए हैं । पर कैसी विडम्बना है कि वे अपनी इस सम्पत्ति को भूलकर अपने-आपको दरिद्र एवं दुःखी अनुभव कर रहे हैं। उन्हें यह बात बहुत अच्छे ढंग से समझ लेनी चाहिए कि उत्पादन और पूंजी को बढाने मात्र से समस्याओं का समुचित हल नहीं होगा। यदि कोई इस प्रकार की कल्पना लेकर चलता है तो मैं कहूंगा कि यह उसकी भयंकर भूल है। भारतीयजन ध्यान दें, जिस देश के सामने रोटी की कोई समस्या नहीं है, वह संभवतः आज सबसे ज्यादा व्यग्र है। मेरा निश्चित अभिमत है कि समस्याओं का स्थायी समाधान आत्म-संतोष और समता की भावना में निहित है। जब तक इन दोनों तत्त्वों का विकास नहीं होता है, तब तक न रोटी की समस्या हल हो सकती है और न साम्प्रदायिक संघर्ष आदि की समस्याएं ही । अपेक्षा है, इस बिन्दु पर सभी लोग अपना ध्यान केन्द्रित करें। मानवता मुसकाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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