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'भूदान' रखा है । वे दूरदर्शी हैं, सूझबूझ के धनी हैं। वे इस बात को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि यहां की जनता की नस-नस में अध्यात्म के संस्कार हैं । भले आज वे प्रगट अवस्था में नहीं हैं, पर उनका अस्तित्व ज्योंका-त्यों विद्यमान है । इसलिए दान और धर्म की भावना से उसे आकृष्ट कर इस आंदोलन के साथ आसानी से जोड़ा जा सकता है । यद्यपि विनोबाजी इस कटु सचाई से भी परिचित हैं कि आज दान का नाम बदनाम हो गया है । पर वे दान को उस रूढ परिभाषा में नहीं बांधते, जिसने देश में लाखों भिखारियों को पैदा किया है । वे दान का अर्थ करते हैं— समविभाग । भूदान के संदर्भ में वे उसका अर्थ करते हैं जिसके पास जरूरत से ज्यादा भूमि है, वह उस पर समाज का अधिकार मानता हुआ उसे सौंप दे। विनोबाजी इसके माध्यम से देश का आर्थिक संतुलन साधना चाहते हैं ।
अणुव्रत : अध्यात्म-आधारित कार्यक्रम
हमने अणुव्रत आंदोलन के रूप में एक कार्यक्रम आधार भी अध्यात्म ही है । इसलिए हमने उसमें 'व्रत' अणु की शक्ति से आज कौन परिचित है । व्रत से संयुत होकर वह राष्ट्र के लिए परम हितकर बन गया है । साथ ही उसे सुगमता से सभी लोग ग्रहण भी कर सकते । वैसे आत्म-साधना की दृष्टि से महाव्रत की साधना आदर्श है और इसीलिए उसका महत्त्व है । पर व्यक्ति-व्यक्ति की शक्ति की तरतमता के कारण वह सबके लिए ग्राह्य नहीं है । विशिष्ट सामर्थ्य सम्पन्न व्यक्ति ही उसे ग्रहण कर सकते हैं, उस साधना पथ पर पदन्यास कर सकते हैं। पर अणुव्रत का साधना-पथ व्यापकता लिए हुए है । अपने व्यावहारिक स्वरूप के कारण वह जन-जन के लिए ग्राह्य है । आपके लिए भी वह ग्राह्य है । बड़ी सुगमता से आप उसके छोटे-छोटे संकल्पों का पालन कर सकते हैं । जैसा कि मैंने पूर्व में कहा, धर्म के सन्दर्भ में भारतीय चिंतन और दूसरे देशों के चिंतन में एक मौलिक अन्तर है। भारतीय चिंतन में धर्म का मौलिक आधार अध्यात्म है, जबकि दूसरे दूसरे राष्ट्रों में उसका आधार राष्ट्रीयता है । हालांकि अध्यात्म आधारित धर्म से भी राष्ट्रहित का उद्देश्य सध जाता है, पर वह उसका एक परिणाम है, सब कुछ नहीं । अध्यात्म - आधारित नीति व धर्म के परिणाम कभी भी बुरे नहीं आ सकते, जबकि राष्ट्रीयता पर आधारित धर्म और नीति के परिणाम बहुत बार अच्छे नहीं भी होते । राष्ट्रीयता कभी-कभी अतिराष्ट्रीयता में परिणत होकर संसार के लिए घातक हो सकती है । इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण आसानी से खोजे जा सकते हैं, देखे जा सकते हैं । अतः भारत में धर्म और नीति के अध्यात्मप्रतिष्ठित स्वरूप को ही सुरक्षित रखा जाए, यही श्रेयस्कर है ।
धर्म का आधार
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दिया है । उसका शब्द जोड़ा है ।
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