________________
२९. नव-निर्माण का शुभ संकल्प संजोएं*
उल्लास का प्रेरक दिवस
पन्द्रह अगस्त का दिन भारतवर्ष के लिए स्मृति-दिन बन गया है । इसके पीछे स्वतंत्रता का इतिहास है। विजातीय बन्धन को तोड़ फेंके बिना कोई भी आदमी स्वतंत्र नहीं होता। भारतीय जनता ने आज के दिन विजातीय तत्त्वों से मुक्ति पाई और यह दिन उल्लास का प्रेरक बन गया। मुक्ति की परिकल्पना : भारतीय संदर्भ
पर भारतीय मानस की मुक्ति इतनी छोटी वस्तु नहीं है । यहां मुक्ति की बड़ी ऊंची कल्पना की गई है। हमारा निकटतम साथी है शरीर । उसे भी बन्धन माना गया है। उससे मुक्ति पाना भी हमारा लक्ष्य है। शरीर पर हमारा ममत्व है। उसके लिए पदार्थों पर ममत्व है। उसके लिए भूमि पर ममत्व है । भूमि के लिए युद्ध पर भी ममत्व है। अतः हमारा भारतीय मानस उन लोगों को स्वतंत्र नहीं मान सकतो, जो पदार्थ की प्राप्ति के लिए दूसरों को बंधन में डाले हुए हैं।
तेल आज की सुख-सुविधा का मुख्य साधन है । वह जहां अधिक है, वहां संसार की लालची दृष्टि जमी हुई है। तेल, जो उनकी समृद्धि का साधन है, वही आज उनके लिए संघर्ष का हेतु बन रहा है। संघर्ष का मूल
लोग संघर्ष का मूल राजनीति में ढूंढते हैं। पर मुझे उसका मूल पदार्थवाद में दीखता है । पदार्थ का ममत्व निरंकुश हो रहा है। त्याग और मंयम की बात एक कहानी बन गई है।
शीत-युद्ध चल ही रहा है । प्रत्यक्ष-युद्ध की भी धमकियां दी जा रही हैं। सभी लोग भयाक्रांत है । युद्ध नहीं चाहते हैं वे भी और चाहते हैं वे भी। युद्ध का परिणाम किसी के लिए भी इष्ट होगा ... इसकी कल्पना किसी को *१२खें स्वतंत्रता दिवस के सन्दर्भ में प्रवस संदेश ।
नवनिर्माण का शुभ संकला संजोए
६
३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org