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स्थिति बहुत अखरती है। रह-रहकर मन में विचार उठता है, लोग क्यों नहीं सोचते कि यह फैशन जीवन को बर्बाद कर रही है। इससे जीवन-स्तर क्रमश: नीचे गिरता है । उसको ऊंचा उठाने के लिए इससे बचना और मुक्त होना अत्यावश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी है । इसके स्थान पर सादगी और संयम को प्रतिष्ठित करना अपेक्षित है । दरिद्र और अनाथ कौन ?
___ भारतीय संस्कृति संयमप्रधान संस्कृति है, त्यागप्रधान संस्कृति है। यहां धन-वैभव और सुख-सुविधाओं के साधनों से विपन्न व्यक्ति को दरिद्र नहीं माना गया है । दरिद्र माना गया है उस व्यक्ति को, जो संयम से विपन्न है । दरिद्र ही क्यों, उसे अनाथ भी कहा गया है
जो करे हुकमत लाखों पर, पर नहीं निज कानों-आंखों पर। भौं पर विकार की रेख खींची, रे! सच्चा वही अनाथ । नाथ-अनाथ अर्थ बिन समझे व्यर्थ करे क्यों बात ?
बहुत गहरी बात है यह । लाखों व्यक्तियों पर अनुशासन करना फिर भी सरल है, पर अपने इन दो कानों और दो आंखों पर अनुशासन करना कठिन है । करोड़ों व्यक्तियों को जीतना फिर भी सरल है, पर अपने एक मन को जीतना कठिन है । करोड़ों-अरबों की धन-संपत्ति का स्वामी होना उतना कठिन नहीं है, जितना संयम से संपन्न होना है, चरित्र से संपन्न होना है। दूसरे शब्दों में करोड़पति-अरबपति होकर भी वह महादरिद्र है, जो संयम
और चरित्र से रहित जीवन जीता है। जीवन का सही मूल्यांकन हो
___ आज सबसे बड़ी भूल यह हो रही है कि संयम और चरित्र से होने वाला जीवन का मूल्यांकन चांदी-सोने के टुकड़ों से होता है, सत्ता और अधिकार से होता है । अणुव्रत आंदोलन इस भूल का परिमार्जन करना चाहता है । वह जन-जन को यह संदेश देता है कि जीवन का सच्चा मूल्य धन-वैभव नहीं, त्याग है । महानता की कसौटी सत्ता नहीं, चरित्र है। मनुष्य का अंकन सुख-सुविधा की साधन-सामग्री से नहीं, संयम और सदाचार से होता है। हनुमान बनें
अणुव्रत-आंदोलन प्रेरणा के स्वर में कहता है----मानव ! तू बाहर कहां भटकता है ? अरे ! जिस हनुमान के अन्तर् में राम अंकित है, राम
विकास या ह्रास ?
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