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तेरापंथ और सत्य-दर्शन
समाज या सम्प्रदाय को मैं एक दूरवीक्षण की तरह मानता हूं। जिस प्रकार दूरवीक्षण यंत्र से व्यक्ति बहुत दूर की चीज देख सकता है, उसी प्रकार एक समाज, संघ या सम्प्रदायविशेष में रह कर भी व्यक्ति दूर-दूर तक बिखरे सत्य से साक्षात्कार कर सकता है । मैं आप से ही पूछना चाहता हूं, क्या दूरवीक्षण यंत्र कोई बहुत लम्बा-चौड़ा यंत्र है ? आपके उत्तर के बिना ही यह बहुत स्पष्ट है, वह कोई लम्बा-चौड़ा यंत्र नहीं है। बहुत छोटासा यंत्र है, संकीर्ण यंत्र है। पर उससे जितना स्पष्ट देखा जा सकता है, उतना कोरी आंखों से भी नहीं देखा जा सकता। अतः किसी समाज या सम्प्रदायविशेष में रहने मात्र से व्यक्ति को संकीर्ण या संकुचित नहीं मानना चाहिए, जबकि उसके विचार उदार हैं, दृष्टिकोण व्यापक है, असाम्प्रदायिक है । मैं तेरापंथ-समाज और संघ से सम्बन्धित हूं, उसकी सीमाओं में रहता हूं। पर सत्य को देखने और समझने के लिए सदा सावकाश हूं । तेरापंथ संघ या सम्प्रदाय की सीमाएं मेरे सत्य-दर्शन में कहीं बाधक नहीं हैं। इसलिए मैं सबसे कहना चाहता हूं कि व्यापकता को सही सन्दर्भ में देखें, सही रूप में समझे ।
संकीर्णता और विशालता
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