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________________ कौन होता है शास्त्रज्ञ ? वह वेदवान है, जो शब्द, रूप आदि विषयों में लिप्त नहीं होता। भौतिक सुखों में आसक्त होने वाला वेदवान् नहीं हो सकता । वेद यानी शास्त्र, वह साहित्य, जिससे जीवन को उत्प्रेरणा मिले । इस विवक्षा से वेद कोई शास्त्रविशेष नहीं रह जाता। समग्र जीवन-प्रेरक साहित्य वेद ही है। आगम-साहित्य भी फिर इसी के अन्तर्गत आ जाता है । अतः इस कोटि के साहित्य को जानने वाला और उसके तत्त्वों को जीवनगत बनाने वाला ही वेदवान् है । चम्मच पदार्थ में सबसे पहले अपना मुंह लगाता है। पर क्या वह कभी उसके स्वाद को जान पाता है। इसी प्रकार केवल शास्त्रों को पढ़ लेने मात्र से कोई विद्वान् नहीं बन जाता । इसीलिए तो कहा गया है शास्त्रावगाहपरिवर्तनतत्परोपि, नैवं बुधः समधिगच्छति वस्तुतत्वम् । नानास्वभावरसभावगतापि दर्वी, स्वादं रसस्य सुचिरादपि नैव वेत्ति ॥ अपेक्षा है, व्यक्ति शास्त्रीय विवक्षा के अनुरूप सच्चा आत्मवान् ज्ञानवान् और शास्त्रज्ञ बने। इसी में उसके जीवन की सच्ची सार्थकता है। ४८ मानवता मुसकाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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