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________________ २२. पसीने की कमाई यह बहुत स्पष्ट है कि अणुव्रत आंदोलन के माध्यम से हमें प्रसिद्धि मिली है, लाखों-लाखों लोगों की आत्मीयता मिली है, नकट्य मिला है। कभी-कभी मन में विचार उठता है, यह ख्याति कहीं बिना पसीने की तो कमाई नहीं है ? बिना पसीने की कमाई किस काम की। पर तभी अन्दर से आवाज आती है-नहीं, ऐसी बात नहीं है। मैं प्रत्यक्ष देख रहा हूं कि संघ के साधु-साध्वियां रात-दिन कठिन श्रम कर इस कार्यक्रम का प्रसार कर रहे हैं। अनेक कार्यकर्ता भी इस अभियान को आगे-सेआगे बढ़ाने के लिए अनवरत परिश्रम कर रहे हैं । मेरा व्यक्तिगत काफी समय भी इस कार्य में लगता है। कभी-कभी तो आवश्यक कार्यों के अतिरिक्त सुबह चार बजे से रात्रि के दस-ग्यारह बजे तक का सारा-का-सारा समय इसी काम में लगता है। और बड़ी बात यह है कि यह कार्य करते हुए मुझे सहज आनन्दानुभूति होती है। कभी भार महसूस नहीं होता । मैं तो बहुत बार ऐसा सोचता हूं कि इससे बढ़कर समय का और क्या सदुपयोग हो सकता है। फिर यह बिना पसीने की कमाई कैसी। इतने परिश्रम के बाद यदि सहज रूप से हमें प्रसिद्ध मिलती है तो मिलती है। उससे हमारा विरोध क्यों हो। हां, उसमैं हमारी आकांक्षा नहीं होनी चाहिए। उसमें लिप्तता नहीं होनी चाहिए। कमल कीचड़ में पैदा होता है, पर उसमें किंचित् भी लिप्त नहीं होता। ठीक इसी प्रकार ख्याति प्राप्त होने पर हमें निर्लिप्त रहना है । मेरे प्रशंसकों से मैं कहना चाहता हूं कि वे इस बात को समझे कि मैंने अणुव्रत कोई नया नहीं चलाया है । यह तो अहिंसा, सत्य आदि शाश्वत तत्त्वों का ही एक युगीन संस्करण है। मैंने तो मात्र उन्हें नए ढंग से प्रस्तुति देकर उनको स्वीकार करने की अभिप्रेरणा दी है । अतः एक प्रेरक से अधिक का श्रेय मुझे नहीं मिलना चाहिए। आप इसकी आचार-संहिता को स्वीकार कर स्वयं ही श्रेय के भागी बनें । इससे आपके जीवन को सुख और शान्ति से जीने का वरदान मिलेगा। पसीने की कमाई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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