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________________ २१. व्यक्ति का नहीं, गुण का महत्व है जैन-दर्शन व्यक्तिविशेष का दर्शन नहीं है। यह निग्रंथों का दर्शन है। जो भी आत्म-विजेता है, उसका दर्शन है। जिसने मन की ग्रन्थि को नष्ट कर दिया है, जिसमें संपूर्ण उत्कृष्ट सरलता, समता और अपरिग्रहता रहती है, उसका दर्शन है। यहां व्यक्ति की प्रधानता नहीं, गुण की प्रधानता है। इसलिये जैन-धर्म के सर्वोत्कृष्ट मंत्र 'नमोक्कार मंत्र' में किसी व्यक्तिविशेष को नमस्कार नहीं किया गया है, अपितु गुणों को ही नमस्कार किया गया है। व्यक्ति आज सत्य पर है, कल न जाने वह क्या हो जाए। इसलिए व्यक्ति का महत्व नहीं, गुणों का महत्व है । 'नमोक्कार मंत्र' में अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु-इन पांचों को नमस्कार किया गया है। दिल्ली में एक भाई ने मुझ से प्रश्न किया -~-'क्या आपके संघ के साधु ही सुपात्र हैं और शेष कुपात्र ?' मैंने उत्तर दिया -~~~-'क्या कोई ऐसे कह सकता है। मेरी मान्यता तो यह है कि सम्यक् ज्ञान, दर्शन और चरित्र का धारक साधु दान के लिए सुपात्र है, भले वह किसी भी सम्प्रदाय का साधु क्यों न हो।' ___ जैन-दर्शन के अनुसार प्रत्येक मनुष्य में अच्छाई और बुराई दोनों ही रहती हैं । कोई व्यक्ति एकांतत: बुरा होता है या अच्छा होता है, ऐसी भाषा जैन-दर्शन को मान्य नहीं है । घोर मिथ्यादृष्टि में भी सम्यक्त्व का अंश रहता है । अत: वह एकांत बुरा ही है, ऐसा नहीं कहा जा सकता । कुछ व्यक्ति अपने से अतिरिक्त अशेष लोगों को बुरा नहीं मानते हैं । अपने समर्थन में वे कबीर के निम्नोक्त दोहे को उद्धृत करते हैं बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय । जो दिल खोजा आपना, मुझ-सा बुरा न कोय ॥ पर यह व्यावहारिक सत्य है । निश्चय दृष्टि में तो प्रत्येक व्यक्ति में बुराइयां भी रहती हैं। यह सत्य है कि हमें उनकी ओर नहीं देखना चाहिए। हमें तो गुणों की ओर ही देखना चाहिए। पर गुण-दोष का विवेक होना आवश्यक है । कुछ लोग साधुओं को देखकर झट उनके सामने झुक जाते हैं । उन्होंने घर जो छोड़ दिया है। पर यह ऐकान्तिक सत्य नहीं है। भगवान महावीर ने कहा-'कुछ साधुओं से गृहस्थ भी श्रेष्ठ होते व्यक्ति का नहीं, गुण का महत्त्व है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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