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शान्ति का मार्ग
संघर्ष अशान्ति का मूल है। वह शान्ति के लिए हो, इसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती । शक्ति-संतुलन शान्ति के प्रयोग का क्षणिक उपशमन भले ही कर दे, किन्तु वह अकुतोभय शान्ति का मार्ग नहीं बनता । शान्ति का मार्ग संयम है । उसका दूसरा कोई विकल्प नहीं है । संयम यानी संकोच । बाहर की सारी वस्तुओं से हटकर अपने-आप में चला जाना- - यह संकोच का व्यापक रूप है | यह बहुत अगले सिरे की बात है । लोग दूसरों की सीमा में घुसे जा रहे हैं, अधिकार हड़प रहे हैं । वे वहां से हटें और नया मोड़ लें, यह आज की अनिवार्य अपेक्षा है । अगर ऐसा नहीं हुआ तो संभव है, स्थितियां सुलझने की अपेक्षा और अधिक उलझ जाएं ।
अपेक्षित है रोग का सही निदान
विश्व की स्थितियां उलझी हुई हैं, यह स्पष्ट है । उन्हें सुलझाने के प्रयत्न चल रहे हैं, यह भी बहुत स्पष्ट है । किन्तु कोरे स्थितियों को सुलझाने के प्रयत्न सफल कैसे होंगे । उनके पीछे एक मनोभाव है । वही सारी स्थितियों को जन्म देता है । उसके बदले बिना स्थितियों के जटिल होने का स्रोत कैसे रुकेगा । रोग का सही निदान किया जाए तो परिस्थितियों को बदलने से पहले मनोभाव को बदलने की बात आती है । पहले जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के अनुकूल परिस्थिति या पहले संयम का वातावरण ? यह प्रश्न सहज उद्भूत नहीं है । संयम का प्रश्न मानसिक जगत् से उत्पन्न परिस्थितियों से जुड़ता है । ये जितने राजनीतिकवाद हैं, उन्हें मैं असंयम की प्रतिक्रिया मानता हूं । असंयम और उसका हिंसात्मक प्रतिकार- ये दोनों अच्छे नहीं हैं । किन्तु संयम प्रतिकार लाता है, यह बहुत बड़ा सत्य है । सारे विस्तार का संक्षेप इतने में है कि असंयम न बढ़े ।
संघर्ष कैसे मिटे ?
१८. संघर्ष कैसे मिटे ?
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