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________________ जीवन के सही सिद्धान्त ह्रास पाते जा रहे हैं। इसलिए आज के प्रबुद्ध लोग चिन्तित हैं। वे कष्ट महसूस करते हैं-'हा ! कष्टमापतितम्, हा ! कष्टमापतितम् ।' यह बहुत बड़ा दुभिक्ष है। प्राणपण से इस दुर्भिक्ष को मिटाने का प्रयत्न होना चाहिए। देश में भोगवाद की बाढ़ आ रही है । लोग बेघरबार हो रहे हैं। ऐसी दशा में जरूरत है, उन्हें सहृदयता से सम्हाल लेने की, सहयोगी बनकर सहयोग करने की। इस ओर अणुव्रत-आन्दोलन का भी एक छोटा-सा प्रयास है। एक तरफ भारतीय संस्कृति की गौरव गाथाएं गाई जाती हैं । हमारी संस्कृति सबसे अच्छी संस्कृति है, ऐसी है, वैसी है। दूसरी ओर वह प्रशस्त भारतीय संस्कृति दूसरी संस्कृति से आछन्न और आवृत है। संस्कृति : दो प्रकार । वास्तव में तो संस्कृति के भेद-प्रभेद हो नहीं सकते। यह भारतीय संस्कृति है, यह अभारतीय संस्कृति है, ऐसा विभाजन हो ही नहीं सकता। संस्कृति का क्या भारतीय, क्या अभारतीय । तत्त्वतः संस्कृति का कैसा विभाजन । एक आकाश के दो टुकड़े हो सकते हैं क्या । अगर आप कहना ही चाहें तो कहें.मानवीय संस्कृति और अमानवीय संस्कृति अथवा अच्छी संस्कृति और बुरी संस्कृति । भारत में रहने वाले लोगों के अच्छे संस्कार ही तो सही अर्थ में भारतीय संस्कृति हो सकते हैं। भारतीय संस्कृति के माने होगा-- ऊंची संस्कृति, त्याग की संस्कृति, संयम की संस्कृति और अध्यात्म की संस्कृति । भारत आदर्श क्यों ? आज भी भारत ने अणुबम तैयार नहीं किये । उद्जनबम भारत ने नहीं निकाले । विस्फोटक पदार्थ भारत ने नहीं खोजे। फिर भी भारत संसार के लिए आदर्श क्यों है ? संसार भारत को आदर की दृष्टि से क्यों देखता है ? क्या जनसंख्या ज्यादा है इसलिए ? नहीं, जनसंख्या तो अन्य किसी देश में भी ज्यादा हो सकती है। भारत इस माने में सब राष्ट्रों का मान्य है कि यहां के नेता, भले वे धार्मिक हैं या नहीं भी हैं, विश्व के जिस-किसी भी भाग में पहुंचे हैं, वहां उन्होंने अहिंसा का बिगुल बजाया है । सही अर्थ में संसार का प्रतिनिधित्व अगर कोई कर सकता है तो भारत ही कर सकता है । क्यों ? इसलिए कि भारत की आत्मा में आज भी अहिंसा की प्राण-प्रतिष्ठा है। भारतीय संस्कृति का आदर्श आज बेहिसाब हिंसा बढ़ रही है। लोक-जीवन बुराइयों से ओतप्रोत अहिंसा : सबसे बड़ा विज्ञान ३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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