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है। उसस कभी अहित हो ही नहीं सकता।
तुम भक्त हो, इसलिए भक्ति करना तुम्हारा परम कर्तव्य है। जीवन और मृत्यु तो उसके सामने बहुत छोटी बातें हैं। क्या तुम्हें यह स्वीकार है ? यदि 'हां' तो तुम पूर्ण निश्चितता एवं विश्वास के साथ भक्ति करो। तुम्हारी लक्ष्य-संसिद्धि असंदिग्ध है।
सत्य की साधना : सबसे बड़ी भक्ति
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