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बड़ी बुरी होती है | मनुष्य जैसी अपनी वृत्ति बना लेता है, वह वैसी ही बन जाती है। नमक को प्रायः भोजन में लोग आवश्यक मानते हैं । मैं नहीं कह सकता कि वह स्वास्थ्य के लिये कितना आवश्यक है और कितना नहीं । पर जीभ को तो उसका स्वाद आता ही है । कई महाशय तो ऐसे होते हैं कि कभी भूल से ही नमक कम या ज्यादा पड़ जाता है तो वे एकदम गुस्से में आ जाते हैं, गालियां देने लगते हैं। यहां तक कि थाली को ठोकर मारकर उठ खड़े होते हैं । यह स्वाद-वृत्ति का ही फल है । यदि व्यक्ति स्वाद का दास नहीं है तो इतना बड़ा रूप नहीं हो सकता । आखिर भरना तो पेट ही है ! वह क्या नमक के बिना नहीं भर सकता । एक बात और समझने की है-- -कभी नमक कम या अधिक पड़ भी जाए तो बनानेवाले को शान्तिपूर्वक भी तो समझाया जा सकता है । थोड़ी-सी बात के लिए आपे से बाहर हो जाना सचमुच मानवता का नग्न नृत्य है । और नमक की तो ऐसी बात है कि पहले एक-दो ग्रास में तो इसके बिना कुछ फीकापन महसूस होता है पर फिर बैसे कोई अन्तर नहीं लगता । यह स्वयं मेरे अनुभव की बात है । कभीकभी शाक में नमक कम आता है तो मैं बोलता नहीं, चुपचाप खा लेता हूं । पहले तो एक-दो ग्रास में अटपटा-सा लगता है, पर फिर कोई विशेष अटपटा नहीं लगता । बाद में दूसरे साधु खाते हैं तो कभी-कभी वे मुझे कहते भी हैं । पर मैं समझता हूं, इसमें ऐसी क्या बात है । और कभी-कभी तो दूसरों को पता ही नहीं चलता ।
तामसिक वृत्तियों को बढ़ानेवाला भोजन क्यों ?
लोग स्वाद के लिए शाक-शब्जी में बहुत मिर्च-मसाले डालते हैं । पर मैं समझ नहीं पाता कि वे इस स्वाद से क्या पाते हैं । जब सात्विक आहार से भी काम चल सकता है तो फिर इतने तले, भुंजे और मिर्च मसालों की क्या आवश्यकता है । इससे तो उल्टा स्वास्थ्य बिगड़ता ही है । हम तो साधु ठहरे । विभिन्न प्रदेशों में जाते हैं। वहां जैसा भोजन मिलता है, उसी से काम चलाते हैं, क्योंकि हमारे लिए कोई अलग से भोजन नहीं बनता । जैसा लोग खाते हैं, वैसा ही हमें मिलता है । अतः कभी-कभी हमारे बड़ी दिक्कत हो जाती है । उधर गुजरात में हम गये । वहां शाक बड़े सात्विक बनते हैं । अतः वहां हमें भी काफी अनुकूलता रही। यहां तक कि हमारे कई साधुओं ने इसे बड़ा सुख माना । पर हमें एक जगह तो रहना नहीं है । इधर महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान में आए तो फिर वही मिर्च-मसाले शुरू हो गए । इससे कई साधुओं के तो मुंह में छाले हो गए। तब मन में आया, लोग क्यों व्यर्थ ही स्वाद के वश होकर तामसिक वृत्तियों को बढ़ाने वाला भोजन करते हैं ।
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मानवता मुसकाए
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