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१२. भारत की सबसे बड़ी पूंजी
भारतीय जीवन का मौलिक स्वरूप
भारतीय नीति और चरित्र के प्रधान अंग हैं—अभय, अनाक्रमण, अहिंसा, मैत्री, सत्य, प्रामाणिकता, सात्त्विकता, आहार-शुद्धि या मादक वस्तु-वर्जन और सादगी । सपनों की दुनिया में जाकर भी जो सपने का नहीं बनता, वही वास्तविक व्यक्ति है। विलास की जिन्दगी बितानेवाले कभी भी शांति को नहीं छू सकते। गरीवी की अभावात्मक स्थिति और अमीरी की अति भावात्मक स्थिति से परे जो त्याग या संयम है, इच्छाओं और वासनाओं की विजय है, वही भारतीय जीवन का मौलिक स्वरूप है। इसी ने भारत को सब देशों का शिरमौर बनने का अवसर दिया था।
आवश्यकताओं को बढ़ाने की बातें सुनने में मीठी लगती हैं। किन्तु उन्हें बढ़ानेवाले आज कितने असंतुष्ट और अशांत हैं, यह कौन नहीं जानता। भारतीय सूत्र है---आवश्यकताओं का अल्पीकरण करो। इससे जीवनशक्तियों का विकास होता है। जीवन-विकास को दबानेवाला पदार्थ-विकास हमें नहीं चाहिए । मेरी दृष्टि में भारत के पास सबसे बड़ी पूंजी है-नीति और चरित्र । सिक्के की पूंजी यहां जीवन का साधनमात्र रही है, साध्य नहीं । साध्य रहा है--संतोष और शांति ।
समाज व्रती बने
___संतोष और शांति की प्राप्ति का साधन है-- व्रत या संयम । व्रती समाज की कल्पना जितनी दुरूह है, उतनी ही सुखद है। व्रत लेने वाला कोरा व्रत ही नहीं लेता । पहले अपने विवेक को जगाता है, श्रद्धा और संकल्प को दृढ़ करता है, कठिनाइयों को झेलने की क्षमता पैदा करता है, प्रवाह के प्रतिकूल चलने का धीरज लाता है और फिर वह व्रत लेता है ।
सूक्ष्म दृष्टि से देखें तो बाहर का अनुशासन विजातीय अनुशासन है । व्रती आत्मानुशासन की परिधि में आ जाता है । आज अनुशासन की शृंखला छिन्न-भिन्न हो रही है। स्वतंत्रता का सही मूल्य नहीं आंका गया है। नियमानुवर्तिता व मर्यादा के बिना स्वतंत्रता नहीं आती।
भारत की सबसे बड़ी पूंजी
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