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११. संभव है विश्व शांति
मनुष्य मूढ हो रहा है
मूढ का अर्थ अज्ञानी नहीं है । जो मोह - ग्रस्त हो, उसे मूढ कहा जाता है | आज का मनुष्य अज्ञानी नहीं है, किंतु मूढ है । एक व्यक्ति के प्रति दूसरे व्यक्ति के मन में, एक वर्ग के प्रति दूसरे वर्ग के मन में, एक राष्ट्र के प्रति दूसरे राष्ट्र के मन में शंका और भय के भाव घिरे हुए हैं । ऐसा लगता है, जैसे विश्वास जनमा ही न हो। इस अविश्वास की भावना ने शत्रु-भाव को बहुत ही गहरा दिया है, जटिल बना दिया है। प्रलय की कल्पना इसी भूमिका में पल रही है ।
विश्व शांति के लिये खतरा
वैयक्तिक चरित्र की उच्चताविहीन सामुदायिकता बढ़ रही है, यह विश्व शांति के लिए गंभीर खतरा है । संयमविहीन राष्ट्रीयता की भावना, रंग-भेद की भित्ति पर टिकी हुई उच्चता और नीचता की परिकल्पना, अधिकार-विचार की भावना और शस्त्रों की होड़ ये सभी विश्व शांति के लिए खतरे हैं ।
विश्व शांति का आधार
प्रश्न है, विश्व शांति का आधार क्या है ? विश्व शांति का मौलिक आधार है -- वैयक्तिक शांति | इसके अभाव में हजार प्रयत्न करने पर भी विश्व शांति फलित नहीं हो सकती । आप पूछेंगे, वैयक्तिक शान्ति का व्यावहारिक रूप क्या है ? वैयक्तिक शांति का महान् रूप क्षमा और अनाक्रमण में प्रतिबिम्बित होता है । इसलिए शांति चाहनेवाले सभी व्यक्तियों का यह कर्तव्य है कि वे आज वैयक्तिक चरित्र - उच्चता, संयम, मनुष्य जाति की एकता, अनाक्रमण और निःशस्त्रीकरण के प्रयत्नों को बलवान् बनाते हुए विश्व शांति के आधार को पुष्ट बनाने का प्रयत्न करें । हिंसा : कारण और परिणाम
हिंसा की जड़ विलासिता, ऐश्वर्य और अधिकार में है । दूसरे शब्दों में सुख-सुविधा की अति में है । जो स्वार्थी होता है, अपनी सुख-सुविधा को
संभव है विश्व शान्ति
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