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चले । हालांकि प्रतिस्रोत में सबकी गति समान नहीं होती, किंतु जितनी होती है, वह अच्छी है । तपस्या भले कोई भी करे, अच्छी है। मिश्री खाने से क्या मुसलमान व हरिजन का मुंह कड़वा होगा? नहीं, जो स्वस्थ है, उसका मुंह मीठा ही होगा । ठीक इसी प्रकार तपस्या आदि धर्म कोई भी क्यों न करे, वह मोक्ष-साधक ही है। धर्म का अधिकार नास्तिक को भी है।
सार-संक्षेप यह कि धर्म सर्वजनहिताय है, सर्वजनसुखाय है और आकाश की तरह व्यापक है। भले कोई उसे अफीम कहे, पर इससे उसकी गुणात्मकता और व्यापकता में कहीं कोई अन्तर नहीं आ सकता।
मानवता मुसकाए
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