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६. सुधार को प्रक्रिया
नैतिकता का आयात नहीं होता
देश में चरित्र-हीनता की बाढ़ आने से नैतिक दुर्भिक्ष हो गया है। अनाज का दुभिक्ष होने पर उसकी पूर्ति हो सकती है। दूसरे स्थानों से आयात किया जा सकता है । परन्तु नैतिकता का आयात नहीं होता। आज अनैतिकता एक छोर से दूसरे छोर तक व्याप्त है। इसे मिटाने के लिए भगीरथ प्रयत्न करना होगा। याद रखें, इसको मिटाने के लिए कोई परमात्मा या देवता नहीं आएगा । यह कार्य मनुष्यों को ही करना होगा।
__मनुष्य समाज-सुधार, प्रदेश-सुधार और राष्ट्र-सुधार करने से पहले स्व-सुधार न भूल जाए। व्यक्ति-सुधार का असर समाज और देश पर हुए बिना नहीं रहता। एक तपस्वी जंगल में मूक साधना करता है, किंतु उसका प्रभाव पारिपाश्विक वायुमण्डल में फैल जाता है। लोग कहते हैं- यज्ञ का उद्देश्य भी वायुमण्डल को शुद्ध करना है। सार यही है कि व्यक्ति-सुधार ही अन्य सुधारों का मूल है। व्यक्ति-सुधार : तीन सूत्र
व्यक्ति-सुधार के तीन सूत्र हैं१. आत्म-निरीक्षण। २. आत्म-आलोचन । ३. संकल्प।
आंख से सारा संसार देखा जा सकता है, लेकिन अपना मुंह नहीं । उसके लिए दर्पण अपेक्षित है। यदि शरीर में हड्डी, मांस, नाड़ी आदि को देखना हो तो बिना एक्सरे के असम्भव है। इनसे भी अन्दर की ओर देखना चाहें तो वह बाह्य पदार्थ का विषय नहीं है। उसके लिए बाह्य नेत्रों से काम नहीं चलेगा। आत्मा से आत्मा को देखना होगा। इसीलिए कहा गया'संप्पिक्खए अप्पगमप्पएणं ।'
आत्म-निरीक्षण में वंचना नहीं हो सकती। मनुष्य दूसरे के विषय में गलत धारणा रख सकता है, किन्तु अपने विषय में नहीं। व्यक्ति आत्मनिरीक्षण से आत्मा की आलोचना करे। तत्पश्चात् सत्संकल्प करे।
सुधार की प्रक्रिया
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