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० अनुभव सत्य का निचोड़ है। (१८६) ० परिस्थितियों के सामने घुटने टेकने वाला गिरता है और उनसे
लड़ने वाला उठता है, आगे बढ़ता है । (१८६) • संयम की प्रेरणा वे ही दे सकते हैं, जो स्वयं संयत हों। (१८८) ० छोटों के दिल में भ्रांति का बीज बड़ों के असंयम ने ही तो बोया
है। (१८८) ० व्यवस्था और अहिंसा के परिणामों को एक तुला से तोलना अपने
आप में बड़ी भूल है। (१८८) ० समाज के मुखिया यदि सामूहिक हित की व्यवस्था और अहिंसा में विश्वास रखने वाले संयम के माध्यम से समाज को बदलना चाहें तो वैयक्तिक स्वार्थ और रक्त-क्रांति दोनों प्रयोजनशून्य बन जाते हैं।
(१९०) • परिस्थिति के आवश्यक संशोधन में मुझे कोई आपत्ति नहीं है, पर उसके प्रभाव से मुक्ति तभी संभव है, जब व्यक्ति में उसे जीतने की
क्षमता उत्पन्न होगी। (१९०) • ज्ञान, श्रद्धा, भक्ति और शांति इन चार तत्वों से मिलकर मानव
जीवन बनता है, मानव मानव बनता है। (१९३) • सबसे पहले मैं एक मानव हूं। उसके बाद धार्मिक हूं। तत्पश्चात्
जैन और अन्त में तेरापंथी हूं। अत: मेरा सबसे पहला विश्वास मानवता में है । (१९३) • मानवता में कोई भेद नहीं होता। वह मेरे, आपके, सबके लिए
समान रूप से ग्राह्य होनी चाहिए। (१९३) । • निःसंशय होकर कार्य करने वाला ही सफलता का वरण कर सकता
है। (१९५) • जीवन-निर्माण से बढ़कर और कोई बुनियादी कार्य क्या हो सकता
है । (१९५) ० अशांति की जड़ है-हिंसा । जड़ में जब हिंसा है, दुर्भावना है, द्वेष है, तब ऊपर अहिंसा, सद्भावना और प्रेम कैसे आ सकता है ।
(१९८) • जहां संग्रह लक्ष्य बन जाता है, वहां अर्थार्जन में जायज-नाजायज का विवेक नहीं रह सकता । (२०४)
प्रेरक वचन
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