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) अध्यात्म-आधारित नीति व धर्म के परिणाम कभी भी बुरे नहीं आ
सकते, जबकि राष्ट्रीयता पर आधारित धर्म और नीति के परिणाम बहुत बार अच्छे नहीं भी होते । राष्ट्रीयता कभी-कभी अतिराष्ट्रीयता
में परिणत होकर संसार के लिए घातक हो सकती है। (६७) • निराशा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है । (६८) , श्रद्धाशून्य ज्ञान व्यक्ति को मंजिल तक नहीं पहुंचा सकता । (६९) • चलते सब हैं, पर सच्चा चलना उन्हीं का है, जो दूसरों के लिये
पगडंडी बन जाये। बोलते सब हैं, पर बोलना उन्हीं का है, जिससे
दूसरे प्रेरणा पायें। (७५) • व्रत एक कवच है, जिसे पहनकर मनुष्य कहीं भी चला जाए, वह
उसकी बुराइयों से रक्षा करने में समर्थ है । (७७) ० मनुष्य बुराई करता है, यह उसकी कमजोरी है। पर बुराई को
अच्छा मानना, उसका प्रचार करना तो बहुत बुरा है, बल्कि सर्वाधिक बुरा है । (७९) ० मिथ्यात्व सब पापों की जड़ है, नींव है और मूलभूत कारण है।
(७९) ० शांति का मार्ग संयम है, आत्म-नियन्त्रण है, अपने द्वारा अपना
अनुशासन है । यही धर्म का विशुद्ध रूप है। ऐसा धर्म सम्प्रदायवाद से परे है । जाति, रंग और लिंग के बन्धनों से मुक्त है। राजनीति
के रंगमंच से दूर है। (८१) ० युद्ध की भावना राष्ट्र से नहीं, व्यक्ति के उर्वर मस्तिष्क से निकलती
० दुर्व्यसन जीवन के लिए अभिशाप है। (८६) ० भविष्य की कल्पना में वर्तमान की उपेक्षा कर देना धर्म का लक्षण
नहीं है। (८७) ० परिस्थितियों के आगे घुटने टेकना मानव की घोर पराजय है।
(९३) • ऋजुता का अर्थ झुकना नहीं है । वह तो आत्मा की खुशबू है, गुण __ है। (९५) • शांति का साधन भौतिक पदार्थ नहीं, अपितु अहिंसा या समता
० अहिंसा का अर्थ है स्वयं निर्भय होना और दूसरों को अभयदान - देना । (९९) • अभयदान से बढकर कोई दान नहीं है । (९९)
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मानवता मुसकाए
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