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________________ ० कर्तव्य-पालन में प्रसन्नता एवं आत्मतोष को अनुभूति होती है। ० सुख का हेतु अभाव भी नहीं है, अति-भाव भी नही है। सुख का हेतु स्वभाव है। (५७) ० जो नहीं होना चाहिए, उसके निवारण की क्षमता त्याग या व्रत में है। (५८) ० सुख का हेतु अहिंसा या मैत्री है । (५८) • जो व्यक्ति दूसरों के स्व का कभी हरण नहीं करता, वह सबका मित्र • वही बोलना सही माने में बोलना है, जिसमें कुछ सार है, संयम का __ संदेश है, जन-जीवन के लिए मार्ग-दर्शन है। (५९) ० बड़ी-से-बड़ी किसी शारीरिक बीमारी से भी अधिक घातक है फैशन की बीमारी। (६०) • लाखों व्यक्तियों पर अनुशासन करना फिर भी सरल है, पर अपने इन दो कानों और दो आंखों पर अनुशासन करना कठिन है। ० करोड़ों व्यक्तियों को जीतना फिर भी सरल है, पर अपने एक मन को जीतना कठिन है । (६१) ० करोड़ों-अरबों की धन-संपत्ति का स्वामी होना उतना कटिन नहीं है, जितना संयम से संपन्न होना है, चरित्र से संपन्न होना है। (६१) ० करोड़पति-अरबपति होकर भी वह महादारद्र है. .जा सयम आर चरित्र से रहित जीवन जीता है । (६१) ० जीवन का सच्चा मूल्य धन-वैभव नहीं, त्याग है । (६१) • महानता की कसौटी सत्ता नहीं, चरित्र है । (६१) ० मनुष्य का अंकन सुख-सुविधा की साधन-सामग्री से नहीं, संयम और सदाचार से होता है । (६१) ० नव-निर्माण के लिए शांति, समन्वय और सहृदयता' की अपेक्षा है, ___ आपसी विरोध की नहीं । (६४). ० अभाव एवं परिस्थितियों को बुराइयों का ऐकान्तिक कारण नहीं माना जा सकता । (६५) . प्रेरक वचन २४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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