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● मनुष्य को भूख इतनी नहीं सताती, जितनी लोलुपता सताती है, असंयम सताता है । (२७)
०
आचारशून्य विद्या मनुष्य के लिए वरदान नहीं बन पाती । (३०) • व्रत के दर्शन में रोग का मूल भोग-वृत्ति है, नहीं । जब तक भोग-वृत्ति न्यून नहीं होती है, मिट सकता है और न संग्रह ही । ( ३१ )
• व्रती बनने के बाद इच्छाएं सीमित नहीं होतीं, बल्कि जब इच्छाएं सीमित हो जाती हैं, तभी व्यक्ति व्रती बनता है । (३१)
• सत्ता से नियंत्रित व्यक्ति जड़ बन जाता है । उसे संग्रह - त्याग में वह आनन्द नहीं आता, जो आत्म-नियमन करनेवाले व्रती को आ सकता है । (३१)
• सत्य से बढकर कोई दूसरा भगवान नहीं हो सकता । (३२)
• मेधावी और पंडित वह है, जो सत्य की उपासना करता है । (३२) • सत्य की भक्ति, पूजा और उपासना का कार्य सहज नहीं है, बहुत कठिन है । उसमें अखूट आत्मशक्ति और एकान्त आत्मार्थीवृत्ति अपेक्षित होती है । (३२)
• सत्य पर अडिग रहना, उसका अनुसरण करना एकांत हित की बात
है । उससे कभी अहित हो ही नहीं सकता । ( ३२-३३)
• सबसे बड़ा विज्ञान अहिंसा का सिद्धान्त है । (३४)
जिसमें अहिंसा नहीं, वह विज्ञान नहीं । (३४)
० विज्ञान वह है, जो जीवन को सही दिशा दे, जीवन को पवित्र और ऊंचा उठाए, अहिंसक जीवन जीना सिखाये | (३४)
०
शोषण और संग्रह
तब तक न शोषण
० भारतीय संस्कृति के माने होगा - ऊंची संस्कृति, त्याग की संस्कृति, संयम की संस्कृति और अध्यात्म की संस्कृति । (३५)
• यदि मनुष्य को सुख-शान्ति से जीना है, तो उसे त्याग और संयम का जीवन अपनाना होगा । ( ३६ )
• विश्वास का आधार है - मैत्री । ( ३७ )
• मित्र से कोई भय नहीं होता । ( ३७ )
• जहां अभय है, विश्वास है, वहां शांति को कोई खतरा नहीं होता । (३७)
• शान्ति का मार्ग संयम है । उसका दूसरा कोई विकल्प नहीं है । (३९)
० यदि मानव समाज में सत्य नहीं रहे तो समाज कभी का छिन्न-भिन्न हो जाएगा । (४०)
प्रेरक वचन
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