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• धर्म का कार्य है मांजना । वह जीवन को मांजता है । जो अपने
जीवन को मांजना चाहें, वे धर्म को पहचानें और उसका प्रारम्भ अपने जीवन से करें । निश्चित ही वे अपने जीवन के निखरे रूप से साक्षात्कार कर सकेंगे । (२२)
० विश्व शांति का मौलिक आधार है— वैयक्तिक शांति । इसके अभाव में हजार प्रयत्न करने पर भी विश्व-शांति फलित नहीं हो सकती । (२३)
०
हिंसा की जड़ विलासिता, ऐश्वर्य और अधिकार में है । (२३)
• एक की या थोड़े-से लोगों की हिंसा पूरी दुनिया को संकट में डाल देती है । इसलिए बढ़ते हुए हिंसा के प्रवाह को हर स्थिति में रोका जाना चाहिए । (२४)
• विश्वास आचरण से पैदा होता है । उसे लेख और वक्तव्य से पैदा नहीं किया जा सकता । (२४)
वही
• सपनों की दुनिया में जो जाकर भी जो सपने का नहीं बनता, वास्तविक व्यक्ति है । (२५)
० विलास की जिन्दगी बितानेवाले कभी भी शांति को नहीं छू सकते ।
(२५)
• गरीबी की अभावात्मक स्थिति और अमीरी की अति भावात्मक स्थिति से परे जो त्याग या संयम है, इच्छाओं और वासनाओं की विजय है, वही भारतीय जीवन का मौलिक स्वरूप है । (२५)
• संतोष और शांति की प्राप्ति का साधन है- व्रत या संयम । (२५) • व्रती समाज की कल्पना जितनी दुरूह है, उतनी ही सुखद है । व्रत लेने वाला कोरा व्रत ही नहीं लेता । पहले अपने विवेक को जगाता है, श्रद्धा और संकल्प को दृढ़ करता है, कठिनाइयों को झेलने की क्षमता पैदा करता है, प्रवाह के प्रतिकूल चलने का धीरज लाता है और फिर वह व्रत लेता है । (२५)
• बाहर का अनुशासन विजातीय अनुशासन है । (२५)
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नियमानुवर्तता व मर्यादा के बिना स्वतंत्रता नहीं आती । (२५)
• तपस्वी और संयमी जीवन ही उत्तम जीवन है । (२६)
• सादगी और सरलता गरीबी की उच्चता नहीं है, किंतु त्याग की महिमा है । (२६)
• भोग- प्रधान जगत् में द्वन्द्व ही परम पुरुषार्थं हे और आत्म- प्रधान जगत् में आत्मिक शांति । (२६)
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