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प्रेरक वचन
० समाधिमय जीवन जीने से बढ़कर और क्या उपलब्धि हो सकती
है। (१) ० दुःखों से आत्यन्तिक मुक्ति या उनके सम्पूर्ण विच्छेद का नाम मोक्ष
है । (३) ० मानव-जीवन ही वह साधन है, जिससे मोक्ष तक की साधना की जा
सकती है । (३) ० संयम ही सच्चा जीवन है । (३) ० संयम जीवन की मर्यादा है। (३) ० संयम के बिना नीतियां निरंकुश हो जाएंगी। जीवन-क्रम अस्त-व्यस्त
हो जाएगा। राजनीति दूषित बन जाएगी। (३) ० जहां भोग का त्याग हो, उन्माद का त्याग हो, आवेग का त्याग हो,
वहां अहिंसा होती है। इसलिए अहिंसा की आत्मा त्याग में
० अहिंसा उपदेश की वस्तु नहीं है। वह जीवन का आचार-धर्म
० अपने भविष्य के निर्माता हम स्वयं ही हैं। हम चाहें तो अपने
भविष्य को बना/संवार भी सकते हैं और चाहें तो नष्ट भी कर
सकते हैं । (६) ० धर्म-तत्व सभी धार्मिक ग्रन्थों में मिलते हैं। पर उन तत्वों पर
व्यक्तिगत या सम्प्रदायविशेष का अधिकार नहीं होता। वे व्यापक होते हैं । (८) ० जीवन की पवित्रता का साधन जो है, वही धर्म है । (९) ० जब ज्ञान और विश्वास सम्यक् होंगे तो आचरण भी सम्यक्
होगा। (९) ० केवल न खाना ही तपस्या नहीं है । खाने में संयम करना भी तपस्या
है, बल्कि बड़ी तपस्या है । (१०)
मानवता मुसकाए
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