________________
छठे से चौदहवें तक सभी गुणस्थान साधु के हैं। देखें-गुण
स्थान । सिद्ध-जिसके ज्ञान, दर्शन व शक्ति पूर्ण अनावृत हो जाते हैं, मोह क्षीण हो
जाता है एवं देह छूट जाता है, उस आत्मा को सिद्ध कहते हैं । नमोक्कार मंत्र (नमस्कार महामंत्र) का दूसरा पद उनके लिए प्रयुक्त है। यह स्थिति सभी गुणस्थानों को पार कर देने के बाद उपलब्ध
होती है । देखें-गुणस्थान । स्वाध्याय-श्रुत-अध्यात्म शास्त्र के अध्ययन को स्वाध्याय कहा जाता है ।
स्वाध्याय के पांच प्रकार हैं-१. वाचना २. पृच्छना ३. परिवर्तना ४. अनुप्रेक्षा ५. धर्मकथा।
प्रेरक वचन
२३५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org