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________________ अणुव्रत-आन्दोलन के इस कार्यक्रम से जुड़ सकता है, अणुव्रती बन सकता है। ऐसा कहने में मुझे कोई अत्युक्ति नहीं लगती कि अणुबम की विभीषिका से संत्रस्त मानवता को त्राण देने की गुणात्मकता इस कार्यक्रम में है। अणुव्रत का मूलभूत आधार अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह-ये पांच तत्व हैं। इसलिए इस कार्यक्रम की आचार-संहिता बनाते समय इस बात का ध्यान रखा गया है कि इसे हिंसा, असत्य आदि शाश्वत बुराइयों के साथ-साथ युगीन बुराइयों के प्रतिकारी तत्व के रूप में प्रस्तुत किया जाए। उदाहरणार्थ किसी को मत मारो---यह अहिंसा का शाश्वत नियम था ही । अब व्यापारी लोगों का शस्त्र से क्या लेना-देना । पर उन्होंने यह नहीं सोचा कि शस्त्र से ही हत्या नहीं होती। उसके दूसरे-दूसरे भी अनेक प्रकार हैं। उनकी एक छोटी-सी कलम तलवार से भी ज्यादा तीक्ष्ण चलती है। तलवार सीधा गला काटती है, जबकि यह कलम अन्दर-ही-अन्दर सीधा कलेजा चीर देती है। क्या यह तलवार की हिंसा से बढकर हिंसा नहीं है। क्या मिलावट करना, तोल-माप में गड़बड़ी करना हिंसा नहीं है। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए अणुव्रत-आन्दोलन व्यापारियों से कहता है-- व्यापारियो ! व्यापार छोड़ना आपके लिए कटिन है। पर व्यापार में नीतिभ्रष्टता को तो छोड़ो, अप्रामाणिकता को तो त्यागो, मिलावट तो मत करो, नकली माल को असली बताकर तो मत बेचो, झूठा तोल-माप तो मत करो, हाथी के दांत की तरह दो-दो बही-खाते तो मत रखो, सौदे के बीच कटौती तो मत करो, लेन-देन तय करके तो मत बदलो, चोरबाजारी तो मत करो। ऐसा करना हिंसा है, पाप है, पतन का बड़ा कारण है। अणव्रत-आंदोलन कहता है-प्राणवियोजन ही हिंसा नहीं है, गलत चितन भी हिंसा है। किसी को अस्पृश्य मानना भी हिंसा है । मैं पूछना चाहता हूं, आदमी का क्या स्पृश्य और क्या अस्पृश्य ? अलबत्ता आदमी के कर्म अच्छे और बुरे हो सकते हैं, उसका आचरण और व्यवहार सत् और असत् हो सकता है, पर व्यक्ति तो घृणित और अस्पृश्य नहीं हो सकता। घृणित और अस्पृश्य तो बुराई होती है, बुरा कर्म होता है, असद् व्यवहार और भ्रष्ट आचरण होता है। इसलिए किसी को भी जाति, वर्ण,....... के आधार पर अस्पृश्य मानना चिंतन का दारिद्रय है, मन का ओछापन है, मानवता पर कलंक का टीका है। अणुव्रत-आंदोलन मानवीय एकता की भावना का विस्तार कर छुआछूत के इस कलंक को धोना चाहता है। अणुव्रत-आंदोलन बताता है किसी से अतिथम लेना भी क्रूरता है, घोर हिंसा है। आपके पास कोई नौकर है। वह आपका काम करता है और आप उसको पारिश्रमिक देते हैं, वेतन देते हैं। पर पारिश्रमिक देते अणुव्रत आन्दोलन : आधार और स्वरूप २११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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