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________________ का तत्व तभी उपलब्ध हो सकता है, जब व्यक्ति के मन में आत्म-विश्वास जागे । आत्म-विश्वास के अभाव में आत्मनियंत्रण या संयम की कल्पना भी नहीं की जा सकती। नैतिक पतन का कारण परन्तु जगत् की स्थिति हमारे सामने वहुत स्पष्ट है। आज आत्मविश्वास है कहां। हाथ को हाथ का विश्वास नहीं। बाप को बेटे का विश्वास नहीं। ऐसे में किसी अन्य पर विश्वास की बात तो कोसों दूर रह जाती है । परमात्मा पर विश्वास तो एक कल्पनामात्र रह गया है । धर्म-कर्म, स्वर्ग-नरक, पुण्य-पाप तो बच्चों का हौआ हो गये हैं। अनेक धर्माचार्य इस स्थिति से चिन्तित हैं। चिन्तित मैं भी हूं। पर इससे भी अधिक चिन्ता मुझे इस बात की है कि आज का मानव शाश्वत सत्य पर भी विश्वास नहीं करता । इससे भी आगे मुझे यह कहने दीजिए कि आज का मानव अपनेआप पर भी विश्वास नहीं करता, अपने-आपको भी नहीं मानता। मेरी दृष्टि में यह अनास्थावाद ही आज के नैतिक पतन का सबसे बड़ा कारण है। सुधार का कार्यक्रम जो ईश्वरकर्तृत्ववादी हैं, वे ऐसा सोच सकते हैं कि परमात्मा हमें सुधार देगा, मनुष्य को मनुष्य बना देगा। पर हम तो पुरुषार्थवादी हैं, आत्मकर्तृत्ववादी हैं। हम तो अपनी आत्मा पर ही विश्वास करते हैं, अपने पुरुषार्थ का ही भरोसा करते हैं। इसलिए हमें ही अपने-आपको सुधारना होगा, अपने हाथों ही अपना उद्धार और जीवन-निर्माण करना होगा। इसी दृष्टिकोण को सामने रखकर मैंने सोचा-एक ऐसा कार्यक्रम जनता के सामने रखा जाए, जो हवा, पानी और आकाश की तरह निर्मल हो, व्यापक हो। वह सम्प्रदायवाद से सर्वथा मुक्त हो। सम्प्रदायविशेष के रंग से रंगी बात काम की होने के बावजूद भी जनता द्वारा सहजरूप में स्वीकार्य नहीं हो सकेगी। सर्वधर्म-सम्मत तत्व ही जनता को आकर्षित कर सकते हैं। इसी चिन्तन का परिणाम है- अणुव्रत-आन्दोलन । अणुव्रत का स्वरूप - अणवत-आंदोलन जाति, लिंग, रंग, भाषा, सम्प्रदाय आदि सभी प्रकार के भेदभावों से पूरी तरह ऊपर उठकर जन-जन के हृदय को छूता है। जीवन की पवित्रता, नीतिनिष्ठा और मानवीय मूल्यों में विश्वास रखने वाला कोई भी व्यक्ति, भले वह किसी भी देश-परिवेश में क्यों न जीता हो, २१० मानवता मुसकाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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