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________________ ७८. अणुव्रत-आन्दोलन : आधार और स्वरूप संयम की मूल्यवत्ता जिस प्रकार भवन का आधार नींव है, वक्ष की स्थिति जड़ है, उसी प्रकार जीवन की नींव या जड संयम है। अगर नीव कमजोर है तो भवन टिकाऊ नहीं होता, उसके गिरने का खतरा सदा बना रहता है। जड़ यदि कमजोर है तो वृक्ष का अस्तित्व खतरे से घिरा ही रहता है। यही बात जीवन की भी है। यदि जीवन संयम-रहित है, तो उसे पग-पग पर खतरा है । न जाने वह कब गिर पड़े। दूसरे शब्दों में वह जीवन, जीवन नहीं रह जाता। आप कल-कल बहती नदियों को देखते हैं। संसार के लिए वे कितनी उपयोगी हैं। क्या आपने कभी इस बिन्दु पर चिंतन किया कि उनकी उपयोगिता किस पर टिकी है ? उसका मौलिक आधार क्या है ? उनकी उपयोगिता का मौलिक आधार संयम ही है। यदि किसी नदी के दोनों तट न रहें, इस मर्यादा में वह न बहे तो क्या परिणाम आएगा, यह बहुत स्पष्ट है । जो नदी संसार के लिए उपयोगिनी और परोपकारिणी होती है, वही अनुपयोगिनी और कष्टदायिनी बन जाती है। लोग उसे संहारिणी कहने लगते हैं । भगवान से प्रार्थना करने लगते हैं-प्रभो! इस विनाशलीला को अब जल्दी समेटो, अन्यथा हम तबाह हो जाएंगे, उजड़ जाएंगे।.... तात्पर्य यह कि नदी का संयम ही उसकी सही इज्जत और सही प्रतिष्ठा है । नीति के सन्दर्भ में भी तो यही बात है । नीति तब तक ही नीति है, जब तक वह संयम से अनुप्राणित है । संयम से कट जाने के पश्चात् वह अनीति बन जाती हैं। शांति और सुख का आधार __ संसार के सभी प्राणी चाहते हैं कि उनका जीवन सुखमय हो, शांतिमय हो, यह एक निविवाद तथ्य है । पर प्रश्न है, बने कैसे ? इस प्रश्न को समाहित किए बिना सुख और शांति की चाह का बहुत अर्थ नहीं रह जाता। मेरी दृष्टि में सुखमय और शांतिमय जीवन का एकमात्र आधार संयम है । वही जीवन सुखमय और शांतिमय हो सकता है, जो संयममय है । संयम का अभाव ही उसे दु:खी और अशांत बनाता है । पर संयम या आत्मनियंत्रण अणुव्रत आन्दोलन : आधार और स्वरूप २०९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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