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७६. अणुव्रत : एक विज्ञान
एक ओर कहा जाता है--आवश्यकता आविष्कार की जननी है। दूसरी ओर कहा जाता है---आवश्यकताओं का अल्पीकरण करो। दोनों बातें एक-दुसरी से सर्वथा विपरीत हैं । एक का मुंह पूर्व की ओर है तो दूसरी का पश्चिम की ओर । गणित की भाषा में कहा जाए तो ३६ की संख्या है।
विज्ञान सुख-सुविधा के लिए आविष्कार पर आविष्कार प्रस्तुत कर रहा है । उपग्रह आकाश का चक्कर लगा रहा है। मनुष्य दिन-प्रतिदिन विलासी बन रहा है।
दूसरी ओर अण्वत-आन्दोलन कहता है---अपना संयम करो। उसका उद्घोष है --- 'संयमः खलु जीवनम् ----संयम ही जीवन है।
किसी को भ्रांति न हो इसलिए स्पष्ट कर देता हूं कि अणुव्रतआन्दोलन का विज्ञान के साथ विरोध नहीं है। बहुत गहरे में तो वह स्वयं एक विज्ञान है । विज्ञान यानी जीवन का विशिष्ट ज्ञान-आरोहण की सही दि शा। अणुव्रत-आन्दोलन का सिद्धांत है-आवश्यकताओं का जितना अल्पीकरण होगा, जीवन उतना ही स्वस्थ, शान्त एवं सुखमय बनेगा। मेरा विश्वास है, यदि मनुष्य शान्ति चाहता है तो उसे इस पथ में आना होगा। प्रश्न उठता है, मनुष्य की न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी नहीं होंगी तो वह नैतिक कैसे बनेगा ? इस प्रश्न का प्रतिप्रश्न यह भी तो है, क्या आवश्यकताओं की पूर्ति होने मात्र से मनुष्य सहज नैतिक बन जाएगा ? स्पष्ट है, यह तो कम संभव है । अलबत्ता आवश्यकताओं की पूर्ति के बिना नैतिकता में सहयोग कम मिलता है, परन्तु आवश्यकताओं की पूर्ति होने से व्यक्ति नैतिक बन ही जाएगा, इसमें मेरा विश्वास नहीं है ।
व्रत आवश्यकताओं की पूर्ति होने और न होने से सम्बन्धित नहीं है। उसका संबंध आत्मा से है, भावना से है। विलासी व्यक्ति व्रती नहीं बन सकता । खाना शरीर के लिए आवश्यक है, परन्तु स्वाद का लोलुप व्रती कैसे बने । अणुव्रती विलासितापूर्ण जीवन को छोड़े।
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मानवता मुसकाए
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