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७६. अणुव्रत सार्वजनीन है
पांच अणुव्रत
अणुव्रत अर्थात् छोटे-छोटे व्रत । संख्या में वे पांच हैं। पहला अणुव्रत है -- अहिंसा | माना आप देश के जवाबदार हैं, इसलिए पूर्ण अहिंसक नहीं बन सकते, देश पर आक्रमण होने पर आक्रांताओं को सहन नहीं कर सकते । किन्तु उसे अहिंसा और धर्म तो न मानें। किसी दूसरे पर आक्रान्ता तो न बनें। किसी के साथ विश्वासघात तो न करें ।
दूसरा अणुव्रत है— सत्य । सत्य जीवन का सारभूत तत्व है । इस बात को यों कहना ज्यादा उपयुक्त होगा कि सत्य ही जीवन है । यदि जीवन में से सत्य निकाल लिया जाये तो शेष सब शून्य हैं। मैं मानता हूं, अज्ञानवश आपसे साधारणतया झूठ - प्रयोग हो भी सकता है, पर ऐसा झूठ तो न बोलें, जिससे दूसरों का बहुत बड़ा अहित हो जाए । व्यापारी दुकान पर बैठकर झूठा तोल-माप तो न करें ।
तीसरा अणुव्रत है— अचौर्य । उसका मतलब है बिना पूछे किसी की कोई चीज न लेना | पर आप इसे पूरा निभा नहीं सकेंगे । चलते ही कहीं से तिनका उठा लेते हैं, किसी के खेत में से खूंटा उखाड़ लेते हैं । यद्यपि आदतन तो यह भी नहीं होना चाहिये, पर इससे बचना अगर संभव न हो तो कम-से-कम ऐसी चोरी तो न करें, जिससे आपका पतन हो, आपके समाज का पतन हो, देश का भी पतन हो । दूसरे - दूसरे देशों में आपके देश की निंदा हो ।
अधिक ब्याज लेने को भी मैं एक प्रकार को चोरी मानता हूं । कहने को कोई कहेगा कि इसमें हम कोई किसी की चोरी थोड़े ही करते हैं । वह हमें खुशी-खुशी ब्याज देता है, तब हम लेते हैं । पर भाइयो ! मैं आपसे ही पूछना चाहता हूं, भोले-भाले प्राणियों की मजबूरी का लाभ उठाकर उन्हें चूसना, चोरी नहीं तो और क्या है ? क्या अधिक सूदखोरी को आप धर्म का कार्य कहेंगे ? आप इस बात को समझें कि अधिक सूदखोरी चोरो का ही एक प्रकार है । इसी तरह अधिक मुनाफाखोरी की वृत्ति भी एक प्रकार की चोरी ही है ।
इसी क्रम में चौथा अणुव्रत है— ब्रह्मचर्यं । अब्रह्मचर्य कीचड़ है ।
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अणुव्रत सार्वजनीन है
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