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है ?' सबने एक स्वर में कहा-'हां।' बस, सुलस ने तलवार अपने हाथ में ली और उससे अपने पैर पर प्रहार करने को तत्पर हुआ। पारिवारिक जनों ने 'यह क्या कर रहे हो ?' कहते हुए तत्काल उसका हाथ पकड़ा। सुलस बोला---'आप मुझे रोक क्यों रहे हैं ? आप तो कह रहे थे कि आज तुम्हें तलवार चलाना आवश्यक है । अत: मैं आपकी आज्ञा का पालन ही तो कर रहा हूं। तलवार के प्रहार से जितनी पीड़ा मुझे होगी, उससे कम पीड़ा भैंसे को भी नहीं होगी। अत: भैंसे पर चलाने की अपेक्षा मैं अपने पैर पर ही क्यों न प्रयोग करूं ।' यह सुन सब निरुत्तर हो गये और बोले-'तुम चाहो सो करो, पर अपने पैर पर तलवार मत चलाओ। हम तुम्हें बिना तलवार चलाये ही गृहपति का पद देते हैं।' इस प्रकार बिना किसी का वध किए उसे गृहपति का पद मिल गया।
यह है अहिंसक समाज की कल्पना का आधार । व्यक्ति-व्यक्ति यदि आज ऐसी वृत्ति अपना ले तो अपने-आप अहिंसक समाज बन जायेगा। अति अहिंसा की बात हम जाने दें। बस, यदि कोई अनावश्यक हिंसा और दूसरों पर आक्रमण भी न करे तो बहुत है। यही अणुव्रत-मार्ग है । अणुव्रती बनने का अर्थ ही यह है कि वह अपना सुख लेगा, पर दूसरों को दुःख नहीं देगा । वह अपना पेट भरेगा, पर दूसरों की रोटी नहीं छीनेगा। ऐसी परिस्थिति का जब निर्माण हो जायगा तो स्वयं ही अहिंसाप्रधान या अहिंसक समाज-व्यवस्था की परिकल्पना साकार रूप ले लेगी।
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मानवता मुसकाए
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