SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४. अहिंसक समाज-व्यवस्था आज सर्वत्र अशान्ति का बोलबाला है। अतः सभी को इस बिन्दु पर गंभीरता से सोचना है कि इसका मूल कारण क्या है ? यह इसलिए कि जैसा मूल में होगा, वैसा ही ऊपर आयेगा । अशान्ति आज ऊपर आ रही है। इसलिए जरूर इसके मूल में कुछ है। अत: हमें मूल को ही खोजना है। जब तक उसे नहीं पकड़ा जाएगा, तब तक अशान्ति मिट नहीं सकती। अशान्ति की जड़ है-हिंसा । जड़ में जब हिंसा है, दुर्भावना है, द्वेष है, तब ऊपर अहिंसा, सद्भावना और प्रेम कैसे आ सकता है। अत: शान्ति यदि अभिप्रेत है तो अहिंसा को अपनाना पड़ेगा और इसीलिए अहिंसक समाज की कल्पना सामने आती है। व्यक्ति और समाज यह एक निर्विवाद तथ्य है कि अहिंसा का प्रयोगस्थल व्यक्ति ही है । यदि व्यक्ति अहिंसक बन सकता है तो समाज या राष्ट्र भी अहिंसक क्यों नहीं बन सकते। समाज और राष्ट्र आखिर व्यक्ति से अलग तो कुछ हैं ही नहीं । अत: व्यक्ति को अहिंसक बनाने के साथ-साथ उसके व्यापक रूप यानी समाज को भी अहिंसा की भावना से अनुप्राणित करना होगा। तब ही शान्ति का मार्ग मिल सकेगा। पर हमें अहिंसा की अतिकल्पना में भी नहीं जाना है, क्योंकि उससे बहुलांशतः निराशा ही हाथ लगती है। सारा समाज अहिंसक बन जाये~-यह न तो कभी संभव हुआ है और न आज है भी। यद्यपि समाज में द्वेष, मद, मोह, लोभ रहें, यह आवश्यक नहीं है, पर जब तक संसार में प्राणी रहेंगे, तब तक उनका सर्वथा उन्मूलन होना असंभव ही है । इसलिए हमें वैसी ही कल्पना करनी चाहिए, जो संभव हो। इस दृष्टि से हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हम सारे संसार को सुधार ही देंगे। दृष्टिकोण सही हो हम यह मानकर चलते हैं कि प्रयत्न किया जाये तो कुछ अहिंसक बन सकते हैं । पर वह कुछ भी नाकुछ जैसा ही है। सम्पूर्ण अहिंसक तो १९८ मानवता मुसकाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy