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________________ ७३. अणुव्रत-आंदोलन और कार्यकर्ताओं की कार्यादशा सफलता का सूत्र आज मैं अणुव्रत-कार्यकर्ताओं के बीच बैठा हूं। मुझे अणुव्रत-आंदोलन के सन्दर्भ में आपसे एक-दो बातें कहनी है। पहली बात है- अणव्रतकार्यक्रम के प्रति कार्यकर्ताओं के मन में यह निष्ठा होनी चाहिए कि यह एक रचनात्मक कार्यक्रम है और इसके द्वारा हम जीवन-विशुद्धि का एक बहुत महत्वपूर्ण काम कर सकेंगे। कार्यकर्ताओं के मन में जब तक यह आशंका रहेगी कि हम काम तो कर रहे हैं, पर पता नहीं सफल होंगे या नहीं, तब तक काम होने वाला नहीं है। आगमों में कहा गया है'वितिगिच्छ-समावन्नेणं अप्पाणेणं णो लभति समाधि'-संशयशील प्राणी समाधि-आत्मशांति को नहीं पा सकता। भला जो अपने-आपमें ही समाधिस्थ नहीं है, वह दूसरों का क्या कल्याण कर सकेगा। सचमुच किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्ति का यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण सूत्र है । नि:संशय होकर कार्य करने वाला ही सफलता का वरण कर सकता है। अत: सबसे पहले कार्यकर्ताओं को स्वयं को नि:संशय बनाना है। इसे मैं मुल भित्ति या जड़ मानता हूं । यह होगा, तभी वे आगे बढ सकेगे, लक्ष्य तक पहुंच सकेंगे। सबसे बड़ा बुनियादी कार्य हमें इस बात पर गहराई से ध्यान देना है कि आखिर अशुद्धि कहां है ? बुराई कहां है ? वह सड़कों और बाजारों में तो है नहीं। उसका एक मात्र आवास मानव-मन है, मानव-जीवन है। उसे अगर हमें विशुद्ध करना है तो हमें व्यक्ति-व्यक्ति के हृदय तक पहुंचना पड़ेगा। इसके बिना सुधार संभव नहीं है। उसकी बात करना ही बेमानी है। भले आप बड़ी-बड़ी योजनाएं बना लें, पर अन्ततः उनका आधार तो व्यक्ति ही रहेगा। अतः उसे सुधारे बिना कोई भी सुधार संभव नहीं है। भले कुछ लोग हमारे इस कार्य को कोई बुनियादी कार्य न मानें, पर मैं नहीं समझता, मानव-निर्माण या दूसरे शब्दों में जीवन-निर्माण से बढकर और कोई बुनियादी कार्य क्या हो सकता है। अणुव्रत-आंदोलन और कार्यकर्ताओं की कार्यदिशा १९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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