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७२. अणुव्रत आन्दोलन का संदेश
मानव जीवन की परिभाषा
मानव-जीवन क्या है ? यह विषय सदा से चर्चित रहा है | क्या हाड़-मांस का पुतला मानव-जीवन है ? नहीं, केवल हाड़-मांस के पुतले को मानव-जीवन नहीं माना जा सकता। फिर मानव-जीवन किसे कहा जाए ? ज्ञान, श्रद्धा, भक्ति और शांति इन चार तत्वों से मिलकर मानव-जीवन बनता है, मानव मानव बनता है । जब तक उसका जीवन इन चार तत्वों या गुणों से संपन्न नहीं बनता, तब तक वह सही अर्थ में मानव कहलाने के योग्य नहीं होता । मैं आपसे ही पूछना चाहता हूं, इन गुणों से विपन्न मनुष्य और पशु में क्या फर्क है ? बड़े खेद की बात है कि आज मानव मानव नहीं रह गया है । उसे मानव बनना है । इसके लिए आवश्यक है कि वह अपने सही स्वरूप को समझे । कहीं वह शेर के बच्चे का शरीर धारण करने पर भी भेड़िया न बन जाए। उसके जीवन का मूलभूत उद्देश्य भौतिक सुखसुविधाओं के साधनों को प्राप्त करना और भोग-विलास में लिप्त रहना नहीं, अपितु त्याग व संयममय जीवन में रमण करना है ।
मैं सबसे पहले मानव हूं
मैं जैन तत्वों में विश्वास करता हूं, जैन - साधना-पद्धति के आधार पर साधना करता हूं । पर यह मेरी व्यक्तिगत साधना का प्रश्न है । वैसे सबसे पहले मैं एक मानव हूं। उसके बाद धार्मिक हूं । तत्पश्चात् जैन और अन्त में तेरापंथी हूं । अत: मेरा सबसे पहला विश्वास मानवता में है । इसीलिए अणुव्रत आंदोलन के माध्यम से मैं मानवता के निर्माण का कार्य कर रहा हूं । मेरी दृष्टि में मानवता में कोई भेद नहीं होता । वह मेरे, आपके, सबके लिए समान रूप से ग्राह्य होनी चाहिए । अणुव्रत आंदोलन के व्रतों में आपको एक भी व्रत ऐसा नहीं मिलेगा, जो मानवता के सामान्य सिद्धांतों से परे हो । इसीलिए वह किसी धर्मविशेष का नहीं है । और चूंकि वह किसी धर्मविशेष का नहीं है, इसलिए सभी धर्मों का है ।
अणुव्रत आन्दोलन का संदेश
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