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२. मानव-जीवन का वैशिष्ट्य
जीवन की मर्यादा
मानव का जीवन पानी के बुदबुदे की तरह क्षणभंगुर नहीं है । वह पीछे भी था, आगे भी रहेगा । वह अन्यान्य प्राणियों के जीवन से भिन्न है। मानव में मननात्मक शक्ति है। उसमें चिंतन की क्षमता है। जिन कर्मबन्धनों ने जीवन को जकड़ रखा है, उनका विच्छेद कर मोक्षावस्था तक पहुंचने का उसमें सामर्थ्य है । दुःखों से आत्यन्तिक मुक्ति या उनके सम्पूर्ण विच्छे द का नाम मोक्ष है, जो आस्तिक-दर्शन के अनुसार जीवन का चरम विकास है। पर आज का मानव यह सब भूलता जा रहा है, जो कि किसी भी स्थिति में उचित नहीं कहा जा सकता। भौतिक लालसाओं और अभिसिद्धियों की पूर्ति के लिये आज वह नाना देवी-देवताओं की पूजा कर रहा है। लेकिन वह भूल क्यों रहा है कि सबसे अधिक पूज्यत्व तो स्वयं उसमें है, मानव में है। मानव-जीवन ही वह साधन है, जिससे मोक्ष तक की साधना की जा सकती है।
संयम का मूल्य
मोक्ष-साधना का आधारभूत तत्त्व है--संयम । संयम ही सच्चा जीवन है। भोग में सच्चा सुख और शांति कहां । असंयमी जीवन सुरक्षित नहीं कहा जा सकता । वह सदा दुःखों से आक्रांत रहता है । शास्त्रों में कूर्म (कछुए) के उदाहरण से इस सचाई को बड़े सुन्दर ढंग से प्रगट किया गया गया है। दो कूर्म थे । जल से बाहर आये । एक ने अपने को संयत कर लिया, इन्द्रियों को सिकोड़ लिया। दूसरा स्वछन्द रहा । वह वैसा करने का क्यों कष्ट करने लगा। फलतः वहां घूमती हुई एक लोमड़ी ने उस कछुए को अपना भक्ष्य बना लिया । दूसरा कछुआ, जिसने अपने को सिकोड़ रखा था, जो संयत था, वह बचा रहा। यही मानव-जीवन की कहानी है। संयम जीवन की मर्यादा है। संयम के बिना धर्म का आधार ही क्या रहेगा। संयम के बिना नीतियां निरंकुश हो जाएंगी। जीवन-क्रम अस्त-व्यस्त हो जाएगा। राजनीति दुषित बन जाएगी।
मानव-जीवन का वैशिष्ट्य
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