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विश्वास रखने वाले संयम के माध्यम से समाज को बदलना चाहें तो वैयक्तिक स्वार्थ और रक्त-क्रांति दोनों प्रयोजनशून्य बन जाते हैं । परिस्थिति पर विजय का मंत्र
मेरी धारणा में परिस्थिति का अनुगमन समाज की मानसिक दुर्बलता का रेखाचित्र है। एक के बाद दूसरी या एक प्रकार के बाद दूसरे प्रकार में परिस्थिति रहेगी ही। उसके अंत की कल्पना के चरण में नैतिकता की रेखा न ढंढें । उसका मूल संयम में है। संयम के विकास का मतलब है परिस्थिति पर विजय । मैं फिर साफ कर दू कि परिस्थिति के आवश्यक संशोधन में मुझे कोई आपत्ति नहीं है, पर उसके प्रभाव से मुक्ति तभी संभव है, जब व्यक्ति में उसे जीतने की क्षमता उत्पन्न होगी । अणुव्रत-आंदोलन का लक्ष्य यही है। आप अपना चिंतन बदलें, फिर परिस्थिति के दास आप नहीं होंगे, उसे स्वयं आपकी अधीनता मान्य होगी।
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मानवता मुसकाए
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