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इसमें आपको दिक्कत नहीं पड़ेगी। सारे जीवन, वर्ष या महीने की नहीं, अपितु एक दिन का निरीक्षण करना, प्रतिदिन का निरीक्षण करना कोई भारी नहीं है। आप रोज अपना हिसाब मिलायें कि आज मैंने क्या किया। इससे आपको अपनी भूलों का ज्ञान होगा। पहले दिन जितनी भूल होगी, दूसरे दिन संभवतः उतनी नहीं होंगी। तीसरे दिन और कम। इस प्रकार धीरेधीरे आपका जीवन कंचन बन जायेगा। सच्चे धार्मिक बनें
आज का जन-जीवन वैसा नहीं है, जैसा होना चाहिये । वैसे कतिपय लोगों का जीवन अच्छा है भी तो उससे बात तो नहीं बनती। इसीलिये अणुव्रत-आन्दोलन का प्रवर्तन किया गया है। इससे लोगों को एक पथप्रदर्शन मिलेगा। यद्यपि हमारा मार्ग तो महाव्रतों की साधना का है, लेकिन सारे-के-सारे महाव्रती बन जायें, यह संभव नहीं। अतः महाव्रती नहीं तो कम-से-कम अणुव्रती तो प्रत्येक व्यक्ति बने ही। सारे-के-सारे ब्रह्मचारी नहीं बन सकते, पर व्यभिचार तो हर कोई छोड़े, यह आवश्यक है। व्यक्ति रोटी को सर्वथा नहीं छोड़ सकता, पर अन्याय की रोटी तो छोड़े। गृहस्थ में रहता हुआ मनुष्य सर्वथा हिंसा नहीं छोड़ सकता, पर वह आततायी तो न बने। अपने संरक्षण के लिये दूसरों का भक्षण तो न करे। इस सीमा तक अहिंसक तो वह बन ही सकता है। बन ही क्यों सकता है, उसे बनना ही चाहिए, बल्कि सलक्ष्य बनना चाहिए।
अणुव्रत व्यक्ति-व्यक्ति को धार्मिकता का सही आधार प्रदान करना चाहता है। वह कहता है, व्यक्ति केवल पूजा-उपासना से नहीं, अपितु अपने आचार, विचार और व्यवहार से धार्मिक बने। यानी वह पूजाउपासना भले करे या न करे, पर अपने आचार को शुद्ध, विचारों को सात्विक और व्यवहार को प्रामाणिक रखे, यह नितान्त आवश्यक है। बहुत सही तो यह है कि शुद्ध आचार, सात्विक विचार और प्रामाणिक व्यवहार से ही व्यक्ति को प्रभु की पूजा-उपासना करने की सच्ची अर्हता प्राप्त होती है । मैं आशा करता हूं कि आप अणुव्रती बनकर सच्ची धार्मिकता को प्राप्त होंगे।
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मानवता मुसकाए
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