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तो चले । हमें इससे क्या । कोई दूसरा काम चलता है तो हमें अपना काम मंद और बंद करने की क्या अपेक्षा है । मुद्दे की बात यह है कि आपको कार्य के परिणाम को नहीं, भावना को मापना है । व्यक्तियों की संख्या को नहीं देखना है, गुणात्मकता को देखना है । बहुत सारे व्यक्ति न सही, यदि एक प्रधानाध्यापक या प्रिंसिपल को भी इस कार्यक्रम के प्रति आकृष्ट कर इसके साथ जोड़ लेते हैं तो पूरे विद्यालय में आपका काम सुगम और सहज हो जाता है । अत: आपको किसी भी स्थिति में कार्य की गति को मंद नहीं करना है ।
अणुव्रत आंदोलन की मंजिल
अभी-अभी मैं एक सांसद का पत्र पढ रहा था । उन्होंने लिखा है कि भले ऊपर से आपका काम कम दिखाई देता है, पर गुणात्मकता की दृष्टि से वह वास्तव में ही बहुत ठोस है । आपके लखनऊ - प्रवास के बाद वहां कपड़े की अनेक दुकानों पर जाने का अवसर आया । मैंने वहां पाया कि बहुतसारी दुकानों में भाव-ताव नहीं होता । निर्धारित उचित मूल्यों पर ग्राहकों को माल बेचा जाता है ।'' इससे मुझे ऐसा अनुमानित हो रहा है कि हमारा काम धीरे-धीरे जड़ पकड़ने लगा है । और इससे भी महत्वपूर्ण बात इस सन्दर्भ में मैं जो मान रहा हूं, वह यह है कि हमारे कार्य के प्रति लोगों में एक विश्वास जम रहा है । यही हमारे आन्दोलन की भूमिका है । पर हमें लोगों की सद्भावना प्राप्त करके ही ठहर नहीं जाना है । यह तो प्राथमिक पड़ाव है | मंजिल तो व्रती बनाने की है । इस लक्ष्य को सामने रखकर ही हमको, आपको कार्य करना है। लोगों को व्रती बनाना है । इस कार्य में जरा भी कमी नहीं आनी चाहिए। मैं मानता हूं, इस यात्रा पथ पर चरण गतिशील रहे तो सफलता असंदिग्ध है ।
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मानवता मुसकाए
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